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Showing posts from January, 2018
जय यदुवंश गोवा के भोज एक राजवंश हैं जो गोवा और कोंकण के कुछ हिस्सों पर और कर्नाटक के कुछ हिस्सों को कम से कम तीसरी शताब्दी ईस्वी से लेकर 6 वें शताब्दी तक शासन कर चुके थे, गोवा भोज के राजनीतिक प्रभाव के तहत आए थे, जिन्होंने इस क्षेत्र को सामंतवाद की स्थापना में मौर्य पाटलिपुत्र का सम्राट या शायद शतावहंस के नीचे। भोज सीट का सत्ता चंद्रपुर या चंद्रारा (आधुनिक चंद्रोर) गोवा में स्थित था इतिहासिक भोज का सबसे पहला संदर्भ अशोक के साथ-साथ भव्य पुराण के रॉक संपादनों में पाया जाता है। [2] वे विदर्भ और द्वारका के यादवों से जुड़े हुए हैं, और माना जाता है कि उनके पास उतरे हैं। हालांकि उनका इतिहास बहुत ही अस्पष्ट है, तांबे-प्लेट और अन्य साहित्यिक ऐतिहासिक स्रोत उनके इतिहास पर प्रकाश डालेंगे चंद्रपुर के चन्द्रमंदला क्षेत्र के शासन के दौरान, उनके इलाके में गोवा, कर्नाटक के उत्तर केनरा और बेलगाम जिलों के कुछ हिस्सों का विस्तार हो सकता था। कुछ सूत्रों का कहना है कि वे सतावहना की सामंतताओं हो सकते हैं। [3] वे विदेशी व्यापार के लिए जाने जाते थे, और व्यापारियों के संगठनों का अत्यधिक आदेश दिया गया था

Kaling Empire Of Yadavas

*****यादवों का कलिंग साम्राज्य***** वर्तमान उडीसा राज्य का अधिकांश भाग प्राचीन काल में कलिंग नाम से प्रसिद्द था. उस इतिहास प्रसिद्द कलिंग पर कभी यादवों का साम्राज्य था.  पहली सदी ई.पू.  तक कलिंग का यदुवंशी राजा खारवेल इस महाद्वीप का सर्वश्रेष्ट सम्राट बन  चुका  था और मौर्य शासकों का 'मगध'   कलिंग साम्राज्य का एक प्रान्त बन  चुका   था. इसका विवरण 'खारवेल का हाथीगुम्फा'  नामक  अभिलेख में मिलता है.    उस  अभिलेख में खारवेल का नाम विभिन्न उपाधियों, जैसे - आर्य महाराज, महामेघवाहन, कलिंगाधिपति श्री खारवेल,  राजा श्री खारवेल, लेमराज, बृद्धराज, धर्मराज तथा महाविजय राज आदि  विशेषणों के साथ उल्लिखित है। कलिंग राज्य एवं राजवंश की उत्पत्ति  के बारे में भली-भांति  जानने के लिए यादव  वंशावली के बारे में जानकारी आवश्यक है. इसलिए   निम्न  अनुच्छेद  में संक्षिप्त यादव वंशावली दी गई है:- "परमपिता नारायण ने सृष्टि उत्पति के उद्देश्य से ब्रह्मा जी को उत्पन्न किया. ब्रह्मा से अत्रि का प्रादुर्भाव हुआ. , महर्षि  अत्रि के  चंद्रमा नामक पुत्र हुआ.  चन्द्रमा के वंशज चन्द्र -वशी

Gomanta Kingdom Of Yadavas

#Yadav history #Gomanta  Yadav Kingdom #गोमांत महाभारत महाभारत में वर्णित राज्य था। यह द्वारका में #यादव के राज्य का विस्तार था। इसे पश्चिमी तट में स्थित गोवा राज्य भारत के रूप में पहचाना जाता है। महाभारत में स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हुए यह क्षेत्र दक्षिणी का विस्तार, यादव परिवारों द्वारा कब्जा कर लिया गया था। #महाभारत में गोमांत को प्राचीन भारत (भरत वर्ष) के राज्य के रूप में मंदाक, शांड, विदर्भ आदि के साथ उल्लेख किया गया था। वीर अहीर द्वारा गोमता साम्राज्य की स्थापना मगध राजा जरासंध के निरंतर हमले के कारण मथुरा के #यादव, शूरसेन अहीर साम्राज्य की राजधानी वहां से भाग गए थे। वे दूर दक्षिण तक गोमांत के रूप में पहुंच चुके हैं, आधुनिक भारतीय राज्य गोवा कहा जाता है। शूरसेन अहीर राज्य के अधर्म राजा, जैसे कंस अहीर वासुदेव कृष्ण द्वारा मारे गए थे कंस की पत्नियों  और  जहां मगध के बेटे, मगध के राजा, की बेटियां। उन्होंने कृष्ण के साथियों पर हमला किया यादव के अठारह छोटी शाखाओं से 18,000 भाई और चचेरे भाई के साथ यादव ने निष्कर्ष पर पहुंचे कि अगर वे लगातार लड़ते हैं तो भी वे 300 साल

Vedic Arya V's Only Arya V's MoolNivasi

वैदिक_आर्यं - चन्द्रवँशी पंचजन्य सिर्फ आर्य - सूर्यवंशी / अग्निवंशी या ब्राह्मणों के बनाये क्षत्रिय । द्रविड़ियन - यक्ष , राक्षस या मूल निवासी ये तीनो कौन है ? आज कल राजनीती की कारण लोग इस मुद्दे पर राज नीति करते है तब आप समझ सकते हैं भारत का भविष्य कैसा होगा । इसके लिए नासमझ लोगों को बहकाया जा रहा है और वह मानसिक तौर पर ग्रसित होते जा रहे है इसके लिए यह सच बोलती पोस्ट आपको सच का चेहरा दिखाएगी । सबसे पहले हमारा भारत पहले सीमाओं में नही था कि  लोग सीमाओं और देश के नाम से जाने जाएँ। लोग काबिले और संस्कृति से जाने जाते थे । और Middle East से इनका माइग्रेशन था । वह लोग देवता और गौ और पसु को  अपना सच्चा मित्र मानते थे जो एक बहुत बड़ा धन था । जब दुनिया में सिर्फ अनाज और दूध हो उस दुनिया की  कल्पना करो की कोण सबसे अमीर या धनि होगा । वह होगा जिसके पास अन्न हो या उसके पास जिसके पास चलता फिरता धन हो जिसे वह कहीं भी ले जा सके बड़ी आसानी से वह है पशु अर्थात गौ । Rigved में पंच जन्य या पांच क्षत्रिय कहे जाने वाले आर्यों का जिक्र है । जिनमे से यदु और पुरु आज के भारत के मगध में उनक

Regiment is Ahora Pride Not Reservation

अहीर रेजिमेंट स्वाभिमान की लड़ाई है यदुवंश की । नाकि आरक्षण की जय यदुवंश । एक वक्त वो था जब सबसे बड़ी #जातिगत सेना हमारी थी , और उस सेना से बड़ी आज इस युग में कोई सेना हो ही नही सकती । कुछ लोगों को जब #रेजिमेंट क्या है बताया जाये तो वो ये कह देते हैं कि आरक्षण है , आरक्षण जाति के लोंगो को व्यवसाय देने का उनको काम धंदा देने के लिए लड़ाई , अगर छोटी बुद्धही और खान दान न हो या जिस जाती का इस धरती के लिए जान का बलिदान कभी गया न हो सायद वही लोग यह बात करते हैं गौवरव और शौर्य जैसे शब्द बुस्दिलों के कुल को नही मिलते । सायद इसीलिए वह लोग इस #स्वाभिमान की लड़ाई को इतना छोटा बोल देते हैं । #भारत में अनुमानित अभी 26 करोड़ यादव हैं । और एक रेजिमेंट में 25,000 सैनिक होते हैं तो अब आप बोलॉगे की इतने छोटे #आरक्षण के लिए लड़ क्यों रहे हो ? मैंने कहा था न जिसके कुल का इतिहास न पता हो या रहा ही न रहा हो वह #स्वाभिमान जैसा शब्द सिर्फ खुद से जोड़ के देखता  है। मैं ज्यादा दूर नही सिर्फ आज के 300 सालों का शौर्य आपके सामने रखता हूँ । क्योंकि इतिहास के पन्ने खत्म हो जाएंगे पर यदुवंश का शौर्य नही ।

अमरगाथा- महाराजा हरपालदेव यदुवंशी

महान हिंदू सम्राट #महाराजा वीर अहीर #हरपाल देव यादव की अमरगाथा ----------------------------- आज बात करेंगे भारत के सबसे महान हिंदू सम्राट देवगिरी साम्राज्य के अंतिम शासक चंद्रवंशी क्षत्रिय हरपाल देव यादव की जिनको मुस्लिम शासक खिलजी ने जलते तेल में डाल दिया तब भी इन्होंने अपना धर्म नही बदला । देवगिरि यादव राजवंश  850 से लेकर –1334 तक कायम रहा जिसने अपने चरमोत्कर्ष काल में तुंगभद्रा से लेकर नर्मदा तक के भूभाग पर शासन किया जिसमें वर्तमान महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ भाग शामिल थे। उनकी राजधानी देवगिरि थी जिसका नाम मुस्लिम आक्रमणकारियो ने बदलकर दौलताबाद कर दिया था। 13वीं शताब्दी का अंतिम दौर मुस्लिम आक्रमणकारियों से ग्रासित रहा। इसी दौर में आक्रमणकारी अल्लाउद्दीन खिलजी ने आर्यवर्त को लूटने के नापाक मनसूबे से भारत विजय करने निकला था।। उस समय आर्यवर्त में देवगिरि यादव साम्राज्य सबसे बड़ी शक्ति हुआ करती थी। 1309 में जब क्रूर खिलजी ने देवगिरि को जीतने के मनसुबे से चढाई करी तब  देवगिरि साम्राज्य के सम्राट महाराजा रामचंद्र यादव थे। देवगिरि पर चढ़ाई से

वैदिक वर्ण व्यवस्था

यदुकुल का सर्वण मात्र ही सभी पापों से मुक्त करने वाला है । #भगवत_गीता से उद्धरित। वेद और पुराणों के हिसाब से पहले तल पर #वैदिक_क्षत्रिय अर्थात #यदुवंश | #ब्राह्मणों को दूसरे तल पे रखा गया तीसरे तल पर #क्षत्रिय चौथे तल पर #वैस्य पांचवे ताल पर #सूद्र छठवें ताल पर #अछूत #इनके कामों से नही इनके जन्म से यह निर्धारित है। कोई अछूत क्षत्रिय तो हो सकता है लेकिन वैदिक नही उसी तरह कोई ब्राह्मण अस्त्र धारण करे तब भी वह वैदिक क्षत्रिय नही हो सकता । अर्थात ब्राह्मण से लेके अछूत तक सिर्फ यदुवंन्श को ही लक्ष्य बनाकर उसको #खत्म करना चाहेंगे । इन सब की वर्ण कर्मों से बदल जाएगी कोई अछूत से ब्राह्मण बन जाएगा कोई ब्राह्मण अछूत ,लेकिन वैदिक क्षत्रियों का वर्ण नही बदलता । यदुवंश को खुद को वैदिक क्षत्रिय कहने के ऊपर सिद्ध है कि वह वेदों में वर्णित कुलों का अंश है , और यह बात #गीता में जोर देते हुवे परमब्रम्ह ने कह दिया है । शक्ति के साथ पवित्र होने की वजह से यह सबसे उच्चतम कुल है मनुष्य का । देवरूप धरती में धारण करे हुवे देवता हैं  #यदुकुल के सभी जन । जय #जगन्नाथ जय यदुवन्श

Ahir Regiment अहीर_रेजिमेंट

*#अहीर_रेजिमेंट_क्यों_जरुरी_है ?*  (सभी यादव भाईयो से अनुरोध है कि पूरा पोस्ट पढ़े और शेयर करे) • बंधुओ मै आज फौज में अहीर (यादव ) रेजिमेंट की क्या जरुरत है और इस के क्या फायदे हैं , उस के बारे में सब ग़लतफहमी दूर करने का प्रयास इस लेख के ज़रिये कलम से कर रहा हूँ – • फौज ( थल सेना ) में सिपाहियों (अफसरों और क्लर्क की नहीं )ज्यादातर भर्ती (रिक्रूटमेंट ) जाति /क्षेत्र /मज़हब के आधार पर ही होती हैi सन 1857 के संग्राम के बाद अंग्रेजो ने सोचा की अगर भारत को गुलाम बनाये रखना है तो एक ऐसी फौज खड़ी करनी पड़ेगी जिसकी निष्ठा सिर्फ उसकी जाति /क्षेत्र /धर्म पर हो न की भारत के प्रति i और इस दिशा में उन्होंने जाति/क्षेत्र और धर्म आधारित रेजिमेंट बना दी i आज फौज में तीन मुख्य लड़ने वाले अंग है – इन्फेंट्री , तोपखाना और टैंक (कैवेलरी ) – और इन तीनो अंगो और इंजिनियर विंग में तक़रीबन सारी भर्ती जाति /क्षेत्र /धर्म के आधार पर होती है i उदाहरण के लिए जैसे गढ़वाल रेजिमेंट है – गढ़वाल रेजिमेंट में सिर्फ गढ़वाली ही भर्ती किये जातें हैं (गढ़वाल उत्तराखण्ड राज्य का एक क्षेत्र है ) और डोगरा रेजिमेंट में

Why Gwalvanshi Yadavas Have Not Gotra

ग्वालवंश यदुवंशियों की एक मुख्य साखा है | गवालवंश के तीन सबसे महानतम राजवाड़े हैं | एक नेपाल में दूसरा गुप्त साम्राज्य | कोई कोई इन बातों को नही मानेगा लेकिन डीप स्टडी के बाद वह समझ जाएगा | वैसे अभी मैं सिर्फ एक बात को केंद्र बनाकर आपको सच से अवगत करा दूँ | गवालवंश साखा में गोत्र क्यों नही हैं ? इसके लिए आपको भागवत पुराण पढ़ने की जरूरत होगी | लेकिन मैं यहाँ आपको उस स्टोरी से अवगत करा दूँ जो विश्वविख्यात है एक बार ब्रम्हा जी ने कृष्ण को भगवान् अर्थात सुप्रीम गॉड न मानने की गलती करी , और उनकी परीक्षा लेने की सोची और कृष्ण जब खेल रहे थे वृंदावन में तब ब्रम्हा ने उनके सभी ग्वाल बालों जो की देवताओं के रूप थे उन्हें वहां से ब्रम्हा लोक ले गए | ब्रम्हा के इस काम के कारण कृष्ण ने खुद को ही सभी ग्वाल में रूप धारण किया , और ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुवा ही नही | कुछ समय बीत जाने पर ब्रम्हा ने सोचा जरा देखू क्या कर रहा है वो बालक तब उसने देखा की जो ग्वाल वृन्दावन में हैं वही ब्रम्ह लोक में भी | ब्रम्हा ने बहुत सोचा फिर अपनी गलती का अहसास हुवा । और वो कृष्ण भगवान् के कमल चरणों में आ गिर