*****यादवों का कलिंग साम्राज्य*****
वर्तमान उडीसा राज्य का अधिकांश भाग प्राचीन काल में कलिंग नाम से प्रसिद्द था. उस इतिहास प्रसिद्द कलिंग पर कभी यादवों का साम्राज्य था. पहली सदी ई.पू. तक कलिंग का यदुवंशी राजा खारवेल इस महाद्वीप का सर्वश्रेष्ट सम्राट बन चुका था और मौर्य शासकों का 'मगध' कलिंग साम्राज्य का एक प्रान्त बन चुका था. इसका विवरण 'खारवेल का हाथीगुम्फा' नामक अभिलेख में मिलता है. उस अभिलेख में खारवेल का नाम विभिन्न उपाधियों, जैसे - आर्य महाराज, महामेघवाहन, कलिंगाधिपति श्री खारवेल, राजा श्री खारवेल, लेमराज, बृद्धराज, धर्मराज तथा महाविजय राज आदि विशेषणों के साथ उल्लिखित है।
कलिंग राज्य एवं राजवंश की उत्पत्ति के बारे में भली-भांति जानने के लिए यादव
वंशावली के बारे में जानकारी आवश्यक है. इसलिए निम्न अनुच्छेद में
संक्षिप्त यादव वंशावली दी गई है:-
"परमपिता नारायण ने सृष्टि उत्पति के उद्देश्य से ब्रह्मा जी को उत्पन्न किया. ब्रह्मा से अत्रि का प्रादुर्भाव हुआ. , महर्षि अत्रि के चंद्रमा नामक पुत्र हुआ. चन्द्रमा के वंशज चन्द्र -वशी क्षत्रिय अथवा सोम-वंशी क्षत्रिय कहलाये. 'चंद्रमा के बुध नामक पुत्र हुआ. बुध का विवाह इला से हुआ इसलिए चन्द्रमा के वंशजों को (इला) 'ऐल' वंश भी कहा जाता है. बुध के पुरुरवा नामक पुत्र हुआ. पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से ययाति उत्पन्न हुए. ययाति के यदु, तुर्वसु,दुह्यु, अनु और पुरु नामक पांच पुत्र हुए.अनु की वंश परम्परा में आगे चलकर कलिंग नामक राजकुमार हुए. उसके नाम से कलिंग राज्य की स्थापना हुई और कलिंग का राजवंश चला.ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से यादव वंश चला. यदु के पांच पुत्र हुए. जिनके नाम क्रमशः .सहस्त्रजित, पयोद, . क्रोष्टा,. नील और अंजिक हैं, (कई ग्रंथों में यदु के पुत्रों की संख्या चार बलाई गई है) .यदु के सबसे बड़े पुत्र सहस्त्रजित के पुत्र का नाम शतजित था .शतजित के तीन पुत्र हुए- .महाहय , वेणुहय और हैहय. हैहय से हैहय-वंशी यादव क्षत्रिय शाखा प्रचलित हुई. इसी वंश परंपरा में महाराज चेटक हुए. उनके पुत्र का नाम शोभनराय था. शोभनराय अपने श्वसुर के पास रहता था और उनकी मृत्यु के बाद वह कलिंगपति बना. उस शोभनराय के कुल में आगे चलकर महामेघवाहन खारवेल हुए."
खारवेल का जन्म ई: पू. 235 में हुआ. 15 वर्ष की आयु में युवराज पद ग्रहण किया तथा राज्याभिषेक ई.पू. 211 में हुआ. खारवेल ने अपने राज्याभिषेक के दो वर्ष बाद कश्यप क्षत्रियों के सहयोग से 'युषिक' राजाओं को परास्त कर उनकी राजधानी को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया. शासनकाल के पांचवें वर्ष में उसने नन्दों को पराजित किया और उनके द्वारा खुदवाई तनसूली नामक नहर को अपने अधिकार में ले लिया. शासनकाल के सातवें वर्ष में खारवेल ने ललक हथिसिंह नामक एक राजा की कन्या से विवाह किया और साथ ही मुसलीपट्टम पर विजय प्राप्त किया, शासन के आठवें वर्ष में मगध पर आक्रमण करके बारबर पहाड़ी पर स्थित गोरठरी किले को नष्ट कर दिया तथा राजगृह को अपने अधिकार में ले लिया. शासन के 12वें वर्ष में उसने पांड्य राजाओं को परस्त कर उनसे हाथी, घोड़े, हीरे जवाहरात आदि उपहार स्वरुप प्राप्त किया.
खारवेल जैन धर्म का अनुयायी होने के साथ साथ अन्य धर्मों का भी आदर करता था. उसने कुमारी पर्वत पर अहर्तों के लिए देवालय निर्मित करवाया. उदयगिरि में 19 तथा खंडगिरि में 16 विहारों का निर्माण कटवाया. अपने शासनकाल में उसने एक बार ब्राहमणों को सोने का कल्पवृक्ष भेंट किया था. उस वृक्ष के पत्ते भी सोने के बने थे.
खारवेल का निधन ई. पू. 198 में हुआ. साहसी, न्याय-प्रिय, दान-प्रिय एवं धर्मशील होने कारण उसने सुख, शांति, समृधि का सम्राट, भिक्षु सम्राट, धर्मराज आदि रूप में ख्याति प्राप्त किया.
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