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Gwalvansh ke Gotra / ग्वालवंश साखा के गोत्र



ग्वालवंश साखा के गोत्र

1.कोकन्दे
2. हिन्नदार
3.सुराह
4.रियार
5.सतोगिवा
6.रराह
7.रौतेले
8.मोरिया
9.निगोते
10.बानियो
11.पड़रिया
12.मसानिया
13.रायठौर
14.फुलसुंगा
15.मोहनियां
16.चंदेल
17.हांस
18.कुमिया
19.सागर
20.गुजैले
21.सफा
22.अहीर
23.कछवाए
24.थम्मार
25.दुबेले
26.पचौरी
27.बमनियाँ
28.गयेली
29.रेकवार
30.गौंगरे
31.लखोनिया

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Gwalvanshi Yadav / AHIR / ग्वालवंशी यादव / अहीर

ग्वालवंशी यादव / अहीर यदुवंश की दो साखा जो पृथक नही हैं बस नाम पृथक है ग्वालवंशी और नन्द्वंशी | ग्वालवंश / गोपवंश साखा अति पवित्र साखा है महाभारत के अनुसार यह यदुवंशी क्षत्रिय राजा गौर के  वंसज हैं | पर  यह नन्द और वशुदेव के चचेरे भाईयों की संतान भी माने ज़ाते हैँ जो वृष्णिवंश से थे | गोप और ग्वाल को पवित्र कहने के पीछे भी एक कारण है यह गोपियां ऋषियो का रुप हैं जो सत्यूग से नारायण की अराधना कर रहे थे और ग्वाल देवता थे | यही से पृथक साखा ग्वालवंश बनी | यह गोप / या ग्वाल शब्द गौ से है गौ वाला - ग्वाल और गोपाल - गोप जो आर्य का प्रतीक है और गौ धन इन्ही की देन् है इस भारत को | जो की अब हिन्दू होने का प्रतीक है | इन्हे कर्म के आधार पर वैश्य वर्ण में कुछ मूर्खो ने रखा या माना है जबकी वर्ण व्यास्था जन्म से है उदाहरण - परशुराम् जी ब्रहमान थे जन्म से कर्म क्षत्रिय का परंतु क्षत्रिय नहीं | उसी तरह गौ पालन देव पूजा है नकि गौ व्यापार | अत: उसवक्त व्यापार जैसा सब्द भी नहीं था सब वस्तु विनियम् प्रणाली थी तो अस आधार पर वह वैश्य वर्ण के हवे ही नहीं | यह मूल से क्षत्रिय

Yaduvanshi Raja Poras History / यदुवंशी राजा पोरस इतिहास

पोरस आज प्रारम्भ हो रहा है एक महान गाथा! यदुवंश के इस महान गाथा को देखना ना भूलें  शासन काल :- 340 – 317 ई० पू० शासन क्षेत्र – आधुनिक पंजाब एवं पाकिस्तान में झेलम नदी से चिनाब नदी तक | उतराधिकारी :- मलयकेतु (पोरस के भाई का पोता ) वंश – शूरसेनी (यदुवंशी)   सिन्धु नरेश पोरस का शासन कल 340 ई० पू० से 317 ई० पू० तक माना जाता है | इनका शासन क्षेत्र आधुनिक पंजाब में झेलम नदी और चिनाव नदी (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) के बीच अवस्थित था | उपनिवेश ब्यास नदी (ह्यीपसिस) तक फैला हुआ था | उसकी राजधानी आज के वर्तमान शहर लाहौर के पास थी |  महाराजा पोरस सिंध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। उनकी कद – काठी विशाल थी | माना जाता है की उनकी लम्बाई लगभग 7.5 फीट थी | प्रसिद्ध इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद एवं अन्य का मानना है कि पोरस शूरसेनी था| प्रसिद्ध यात्री मेगास्थनीज का भी मत था कि पोरस मथुरा के शूरसेन वंश का था, जो अपने को यदुवंशी श्री कृष्ण का वंशज मानता था| मेगास्थनीज के अनुसार उनके राज ध्वज में श्री कृष्ण विराजमान रहते थे तथा वहां के निवासी श्री कृष्ण की पूजा कि