पोरस
आज प्रारम्भ हो रहा है एक महान गाथा!
यदुवंश के इस महान गाथा को देखना ना भूलें
शासन काल :- 340 – 317 ई० पू०
शासन क्षेत्र – आधुनिक पंजाब एवं पाकिस्तान में झेलम नदी से चिनाब नदी तक |
उतराधिकारी :- मलयकेतु (पोरस के भाई का पोता )
वंश – शूरसेनी (यदुवंशी)
सिन्धु नरेश पोरस का शासन कल 340 ई० पू० से 317 ई० पू० तक माना जाता है | इनका शासन क्षेत्र आधुनिक पंजाब में झेलम नदी और चिनाव नदी (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) के बीच अवस्थित था | उपनिवेश ब्यास नदी (ह्यीपसिस) तक फैला हुआ था | उसकी राजधानी आज के वर्तमान शहर लाहौर के पास थी | महाराजा पोरस सिंध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। उनकी कद – काठी विशाल थी | माना जाता है की उनकी लम्बाई लगभग 7.5 फीट थी |
प्रसिद्ध इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद एवं अन्य का मानना है कि पोरस शूरसेनी था| प्रसिद्ध यात्री मेगास्थनीज का भी मत था कि पोरस मथुरा के शूरसेन वंश का था, जो अपने को यदुवंशी श्री कृष्ण का वंशज मानता था| मेगास्थनीज के अनुसार उनके राज ध्वज में श्री कृष्ण विराजमान रहते थे तथा वहां के निवासी श्री कृष्ण की पूजा किया करते थे | टॉड तथा अन्य इतिहासकारों का कहना है की श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद शूरसेन वंश के कुछ लोगों ने मथुरा एवं द्वारिका से पश्चिम की दिशा में विस्थापित होकर आधुनिक पंजाब एवं आफगानिस्तान के पास एक नए साम्राज्य की स्थापना किया | इसी साम्राज्य का सबसे प्रतापी राजा पोरस हुआ |
बात 326 ईसा पूर्व की है, जब मेसिडोनिया का शासक सिकंदर विश्व विजेता बनने के लिए निकल पड़ा था। सेना सहित उसने भारत की की सीमा पर डेरा डाल लिया था। परंतु भारत पर कब्ज़ा करने से पहले उसे सिंध के महाराज पोरस से युद्ध करना ज़रूरी था। पोरस की वीरता के किस्से वह पहले ही सुन चुका था। पोरस की विशाल सेना और मदमाते हाथियों से भिड़ना, उसकी सेना के लिए कठिन था। इसलिए उसने महाराजा पोरस से दुश्मनी की जगह दोस्ती का हाथ बढ़ाना ही उचित समझा। वह महाराजा से संधि ही करना चाहता था।
सिंध को पार किए बगैर भारत में पैर रखना मुश्किल था। महाराजा पोरस सिंध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। अब संधि का प्रस्ताव लेकर महाराज पोरस के पास कौन जाए? सिकंदर को इस बात की बड़ी उलझन थी। एक दिन वह स्वयं दूत का भेष धारण कर महाराजा पोरस के दरबार पहुंच गया। महाराजा पोरस में देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। इसके साथ-साथ वह इंसान की परख भी बखूबी कर लेते थे। उनकी तेज़ नज़रें, दूत भेष में आए सिकंदर को पहचान गईं। किंतु वह चुप रहे। उन्होंने दूत को पूरा सम्मान दिया। दूत भेषधारी सिकंदर ने अपने सम्राट का आदेश सुनाते हुए कहा, ‘सम्राट सिकंदर विश्व विजय के लिए निकले हैं और राजा-महाराजाओं के सिर पर पैर रखकर चल सकने में समर्थ हैं, वह सम्राट सिकंदर आपसे मित्रता करना चाहते हैं।’
यह सुनकर पोरस मुस्कुराए और बोले, ‘राजदूत, हम पहले देश के पहरेदार हैं, बाद में किसी के मित्र। और फिर देश के दुश्मनों से मित्रता..!! दुश्मनों से तो रणभूमि में तलवारें लड़ाना ही पसंद करते हैं।’ दरबार में बतचीत का सिलसिला ज़ारी ही था, तभी रसोइए ने भोजन के लिए आकर कहा।
दूत को साथ लेकर महाराज पोरस भोजनालय पहुंच गए। भोजन कक्ष में मंत्री, सेनापति, स्वजन आदि सभी मौजूद थे। सबके सामने भोजन परोसा गया किंतु सिकंदर की थाली खाली थी। तभी महाराज पोरस ने आदेश दिया, ‘हमारे प्रिय अतिथि को इनका प्रिय भोजन परोसा जाए।’ आज्ञानुसार दूत भेषधारी सिकंदर की थाली में सोने की रोटियां और चांदी की कटोरियों में हीरे-मोती का चूर्ण परोसा गया। सभी ने भोजन शुरू किया, किंतु सिकंदर की आश्चर्य भरी निगाहें महाराज पर थीं। दूत को परेशान देख महारोज पोरस बोले, ‘खाइए न राजदूत, इससे महंगा भोजन प्रस्तुत करने में हम असमर्थ हैं।’
महाराज पोरस के इस वचन को सुनकर विश्व विजय का सपना देखने वाला सिकंदर गुस्से से लाल हो गया और बोला, ‘ये क्या मज़ाक है पौरवराज।’ ‘यह कोई मज़ाक नहीं, आपका प्रिय भोजन है। ये सोने की रोटियां ले जाकर अपने सम्राट सिकंदर को देना और कहना कि सिंधु नरेश ने आपका प्रिय भोजन भिजवाया है’ महाराज बोले। यह सुनकर सिकंदर तिलमिला उठा, ‘आज तक किसी ने सोने, चांदी, हीरे-मोती का भोजन किया है जो मैं करूं?’
‘मेरे प्यारे मित्र सिकंदर, जब तुम ये जानते हो कि मनुष्य का पेट अन्न से भरता है, सोने-चांदी, हीरे-मोती से नहीं भरता, फिर तुम यों लाखों घर उजाड़ते हो?’ महाराज पोरस बड़े शांतचित होकर बोल रहे थे। ‘मित्र उन्हें तो पसीने की खाद और शांति की हवा चाहिए। जिसे तुम उजाड़ते, नष्ट करते घूम रहे हो, तुम्हें सोने-चांदी की भूख ज़्यादा थी, इसलिए मैंने यह भोजन बनवाया था।’ अपने पहचाने जाने पर सिकंदर घबरा गया। परंतु महाराज पोरस ने बिना किसी विरोध व क्षति के सिकंदर को सम्मान सहित उसकी सेना तक भिजवा दिया।
#जब_पोरस_ने_सिकन्दर(Alexander) के सर से #विश्व-विजेता बनने का भूत उतारा...
जितना बड़ा अन्याय और धोखा इतिहासकारों ने महान पोरस के साथ किया है उतना बड़ा अन्याय इतिहास में शायद ही किसी के साथ हुआ होगा।एक महान नीतिज्ञ, दूरदर्शी, शक्तिशाली वीर विजयी राजा को निर्बल और पराजित राजा बना दिया गया....
चूँकि सिकन्दर पूरे यूनान, ईरान, ईराक, बैक्ट्रिया आदि को जीतते हुए आ रहा था इसलिए भारत में उसके पराजय और अपमान को यूनानी इतिहासकार सह नहीं सके और अपने आपको दिलासा देने के लिए अपनी एक मन-गढंत कहानी बनाकर उस इतिहास को लिख दिए जो वो लिखना चाह रहे थे या कहें कि जिसकी वो आशा लगाए बैठे थे..यह ठीक वैसा ही है जैसा कि हम जब कोई बहुत सुखद स्वप्न देखते हैं और वो स्वप्न पूरा होने के पहले ही हमारी नींद टूट जाती है तो हम फिर से सोने की कोशिश करते हैं और उस स्वप्न में जाकर उस कहानी को पूरा करने की कोशिश करते हैं जो अधूरा रह गया था.. आलसीपन तो भारतीयों में इस तरह हावी है कि भारतीय इतिहासकारों ने भी बिना सोचे-समझे उसी यूनानी इतिहास को लिख दिया...
कुछ हिम्मत ग्रीक के फिल्म-निर्माता ओलिवर स्टोन ने दिखाई है जो उन्होंने कुछ हद तक सिकन्दर की हार को स्वीकार किया है..फिल्म में दिखाया गया है कि एक तीर सिकन्दर का सीना भेद देती है और इससे पहले कि वो शत्रु के हत्थे चढ़ता उससे पहले उसके सहयोगी उसे ले भागते हैं. इस फिल्म में ये भी कहा गया है कि ये उसके जीवन की सबसे भयानक त्रासदी थी और भारतीयों ने उसे तथा उसकी सेना को पीछे लौटने के लिए विवश कर दिया..चूँकि उस फिल्म का नायक सिकन्दर है इसलिए उसकी इतनी सी भी हार दिखाई गई है तो ये बहुत है, नहीं तो इससे ज्यादा सच दिखाने पर लोग उस फिल्म को ही पसन्द नहीं करते..वैसे कोई भी फिल्मकार अपने नायक की हार को नहीं दिखाता है.......
अब देखिए कि भारतीय बच्चे क्या पढ़ते हैं इतिहास में--"सिकन्दर ने पौरस को बंदी बना लिया था | उसके बाद जब सिकन्दर ने उससे पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाय तो पौरस ने कहा कि उसके साथ वही किया जाय जो एक राजा के साथ किया जाता है अर्थात मृत्यु-दण्ड..सिकन्दर इस बात से इतना अधिक प्रभावित हो गया कि उसने वो कार्य कर दिया जो अपने जीवन भर में उसने कभी नहीं किए थे..उसने अपने जीवन के एक मात्र ध्येय, अपना सबसे बड़ा सपना विश्व-विजेता बनने का सपना तोड़ दिया और पौरस को पुरस्कार-स्वरुप अपने जीते हुए कुछ राज्य तथा धन-सम्पत्ति प्रदान किए..तथा वापस लौटने का निश्चय किया और लौटने के क्रम में ही उसकी मृत्यु हो गई.."
ये कितना बड़ा तमाचा है उन भारतीय इतिहासकारों के मुँह पर कि खुद विदेशी ही ऐसी फिल्म बनाकर सिकंदर की हार को स्वीकार कर रहे रहे हैं और हम अपने ही वीरों का इसतरह अपमान कर रहे हैं......!!
मुझे तो लगता है कि ये भारतीयों का विशाल हृदयतावश उनका त्याग था जो अपनी इतनी बड़ी विजय गाथा यूनानियों के नाम कर दी..भारत दयालु और त्यागी है यह बात तो जग-जाहिर है और इस बात का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है..? क्या ये भारतीय इतिहासकारों की दयालुता की परिसीमा नहीं है..? वैसे भी रखा ही क्या था इस विजय-गाथा में; भारत तो ऐसी कितनी ही बड़ी-बड़ी लड़ाईयाँ जीत चुका है कितने ही अभिमानियों का सर झुका चुका है फिर उन सब विजय गाथाओं के सामने इस विजय-गाथा की क्या औकात.....है ना..?? उस समय भारत में पौरस जैसे कितने ही राजा रोज जन्मते थे और मरते थे तो ऐसे में सबका कितना हिसाब-किताब रखा जाय; वो तो पौरस का सौभाग्य था जो उसका नाम सिकन्दर के साथ जुड़ गया और वो भी इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया(भले ही हारे हुए राजा के रुप में ही सही) नहीं तो इतिहास पौरस को जानती भी नहीं..
इतिहास सिकन्दर को विश्व-विजेता घोषित करती है पर अगर सिकन्दर ने पौरस को हरा भी दिया था तो भी वो विश्व-विजेता कैसे बन गया..? पौरस तो बस एक राज्य का राजा था..भारत में उस तरक के अनेक राज्य थे तो पौरस पर सिकन्दर की विजय भारत की विजय तो नहीं कही जा सकती और भारत तो दूर चीन,जापान जैसे एशियाई देश भी तो जीतना बाँकी ही था फिर वो विश्व-विजेता कहलाने का अधिकारी कैसे हो गया...?
जाने दीजिए....भारत में तो ऐसे अनेक राजा हुए जिन्होंने पूरे विश्व को जीतकर राजसूय यज्ञ करवाया था पर बेचारे यूनान के पास तो एक ही घिसा-पिटा योद्धा कुछ हद तक है ऐसा जिसे विश्व-विजेता कहा जा सकता है....तो.! ठीक है भाई यूनान वालों, संतोष कर लो उसे विश्वविजेता कहकर...!
महत्त्वपूर्ण बात ये कि सिकन्दर को सिर्फ विश्वविजेता ही नहीं बल्कि महान की उपाधि भी प्रदान की गई है और ये बताया जाता है कि सिकन्दर बहुत बड़ा हृदय वाला दयालु राजा था ताकि उसे महान घोषित किया जा सके क्योंकि सिर्फ लड़ कर लाखों लोगों का खून बहाकर एक विश्व-विजेता को महान की उपाधि नहीं दी सकती ना ; उसके अंदर मानवता के गुण भी होने चाहिए. इसलिए ये भी घोषित कर दिया गया कि सिकन्दर विशाल हृदय वाला एक महान व्यक्ति था..पर उसे महान घोषित करने के पीछे एक बहुत बड़ा उद्देश्य छुपा हुआ है और वो उद्देश्य है सिकन्दर की पौरस पर विजय को सिद्ध करना...क्योंकि यहाँ पर सिकन्दर की पौरस पर विजय को तभी सिद्ध किया जा सकता है जब यह सिद्ध हो जाय कि सिकन्दर बड़ा हृदय वाला महान व्यक्ति था..
अरे अगर सिकन्दर बड़ा हृदय वाला व्यक्ति होता तो उसे धन की लालच ना होती जो उसे भारत तक ले आई थी और ना ही धन के लिए इतने लोगों का खून बहाया होता उसने..इस बात को उस फिल्म में भी दिखाया गया है कि सिकन्दर को भारत के धन (सोने,हीरे-मोतियों) से लोभ था.. यहाँ ये बात सोचने वाली है कि जो व्यक्ति धन के लिए इतनी दूर इतना कठिन रास्ता तय करके भारत आ जाएगा वो पौरस की वीरता से खुश होकर पौरस को जीवन-दान भले ही दे देगा और ज्यादा से ज्यादा उसकी मूल-भूमि भले ही उसे सौंप देगा पर अपना जीता हुआ प्रदेश पौरस को क्यों सौंपेगा..और यहाँ पर यूनानी इतिहासकारों की झूठ देखिए कैसे पकड़ा जाती है..एक तरफ तो पौरस पर विजय सिद्ध करने के लिए ये कह दिया उन्होंने कि सिकन्दर ने पौरस को उसका तथा अपना जीता हुआ प्रदेश दे दिया दूसरी तरफ फिर सिकन्दर के दक्षिण दिशा में जाने का ये कारण देते हैं कि और अधिक धन लूटने तथा और अधिक प्रदेश जीतने के लिए सिकन्दर दक्षिण की दिशा में गया...बताइए कि कितना बड़ा कुतर्क है ये....! सच्चाई ये थी कि पौरस ने उसे उत्तरी मार्ग से जाने की अनुमति ही नहीं दी थी..ये पौरस की दूरदर्शिता थी क्योंकि पौरस को शक था कि ये उत्तर से जाने पर अपनी शक्ति फिर से इकट्ठा करके फिर से हमला कर सकता है जैसा कि बाद में मुस्लिम शासकों ने किया भी..पौरस को पता था कि दक्षिण की खूँखार जाति सिकन्दर को छोड़ेगी नहीं और सच में ऐसा हुआ भी...उस फिल्म में भी दिखाया गया है कि सिकन्दर की सेना भारत की खूँखार जन-जाति से डरतीहै ..अब बताइए कि जो पहले ही डर रहा हो वो अपने जीते हुए प्रदेश यनि उत्तर की तरफ से वापस जाने के बजाय मौत के मुँह में यनि दक्षिण की तरफ से क्यों लौटेगा तथा जो व्यक्ति और ज्यादा प्रदेश जीतने के लिए उस खूँखार जनजाति से भिड़ जाएगा वो अपना पहले का जीता हुआ प्रदेश एक पराजित योद्धा को क्यों सौंपेगा....? और खूँखार जनजाति के पास कौन सा धन मिलने वाला था उसे.....? अब देखिए कि सच्चाई क्या है....
जब सिकन्दर ने सिन्धु नदी पार किया तो भारत में उत्तरी क्षेत्र में तीन राज्य थे-झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी..पौरस का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था.तीसरा राज्य अभिसार था जो कश्मीरी क्षेत्र में था. अम्भि का पौरस से पुराना बैर था इसलिए सिकन्दर के आगमण से अम्भि खुश हो गया और अपनी शत्रुता निकालने का उपयुक्त अवसर समझा..अभिसार के लोग तटस्थ रह गए..इस तरह पौरस ने अकेले ही सिकन्दर तथा अम्भि की मिली-जुली सेना का सामना किया.."प्लूटार्च" के अनुसार सिकन्दर की बीस हजार पैदल सैनिक तथा पन्द्रह हजार अश्व सैनिक पौरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से बहुत ही अधिक थी..सिकन्दर की सहायता फारसी सैनिकों ने भी की थी..कहा जाता है कि इस युद्ध के शुरु होते ही पौरस ने महाविनाश का आदेश दे दिया उसके बाद पौरस के सैनिकों ने तथा हाथियों ने जो विनाश मचाना शुरु किया कि सिकन्दर तथा उसके सैनिकों के सर पर चढ़े विश्वविजेता के भूत को उतार कर रख दिया..पोरस के हाथियों द्वारा यूनानी सैनिकों में उत्पन्न आतंक का वर्णन कर्टियस ने इस तरह से किया है--इनकी तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल घोड़ों को भयातुर कर देती थी जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे अपितु घुड़सवारों के हृदय भी दहला देती थी..इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके.उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से यूनानी सैनिक को पकड़ लेता था,उसको अपने उपर वायु-मण्डल में हिलाता था और उस सैनिक को अपने आरोही के हाथों सौंप देता था जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था. इन पशुओं ने घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था.....
इसी तरह का वर्णन "डियोडरस" ने भी किया है --विशाल हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए..उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे सैनिकों की हड्डियाँ-पसलियाँ चूर-चूर कर दी. हाथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे..अपने विकराल गज-दन्तों से सैनिकों को गोद-गोद कर मार डालते थे...
इन पशुओं का आतंक उस फिल्म में भी दिखाया गया है..
अब विचार करिए कि डियोडरस का ये कहना कि उन हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ये क्या सिद्ध करता है..फिर "कर्टियस" का ये कहना कि इन पशुओं ने आतंक मचा दिया था ये क्या सिद्ध करता है...? अफसोस की ही बात है कि इस तरह के वर्णन होते हुए भी लोग यह दावा करते हैं कि पौरस को पकड़ लिया गया और उसके सेना को शस्त्र त्याग करने पड़े... एक और विद्वान ई.ए. डब्ल्यू. बैज का वर्णन देखिए-उनके अनुसार झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था.सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा. अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की -"श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है..मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय. मैं इनका अपराधी हूँ,....और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया.----ये बातें किसी भारतीय द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है..
और इसके बाद भी अगर कोई ना माने तो फिर हम कैसे मानें कि पोरस के सिर को डेरियस के सिर की ही भांति काट लाने का शपथ लेकर युद्ध में उतरे सिकन्दर ने न केवल पोरस को जीवन-दान दिया बल्कि अपना राज्य भी दिया... सिकन्दर अपना राज्य उसे क्या देगा वो तो पोरस को भारत के जीते हुए प्रदेश उसे लौटाने के लिए विवश था जो छोटे-मोटे प्रदेश उसने पोरस से युद्ध से पहले जीते थे...(या पता नहीं जीते भी थे या ये भी यूनानियों द्वारा गढ़ी कहानियाँ हैं) इसके बाद सिकन्दर को पोरस ने उत्तर मार्ग से जाने की अनुमति नहीं दी. विवश होकर सिकन्दर को उस खूँखार जन-जाति के कबीले वाले रास्ते से जाना पड़ा जिससे होकर जाते-जाते सिकन्दर इतना घायल हो गया कि अंत में उसे प्राण ही त्यागने पड़े..इस विषय पर "प्लूटार्च" ने लिखा है कि मलावी नामक भारतीय जनजाति बहुत खूँखार थी..इनके हाथों सिकन्दर के टुकड़े-टुकड़े होने वाले थे लेकिन तब तक प्यूसेस्तस और लिम्नेयस आगे आ गए. इसमें से एक तो मार ही डाला गया और दूसरा गम्भीर रुप से घायल हो गया...तब तक सिकन्दर के अंगरक्षक उसे सुरक्षित स्थान पर ले गए..
स्पष्ट है कि पोरस के साथ युद्ध में तो इनलोगों का मनोबल टूट ही चुका था रहा सहा कसर इन जनजातियों ने पूरी कर दी थी..अब इनलोगों के अंदर ये तो मनोबल नहीं ही बचा था कि किसी से युद्ध करे पर इतना भी मनोबल शेष ना रह गया था कि ये समुद्र मार्ग से लौटें...क्योंकि स्थल मार्ग के खतरे को देखते हुए सिकन्दर ने समुद्र मार्ग से जाने का सोचा और उसके अनुसंधान कार्य के लिए एक सैनिक टुकड़ी भेज भी दी पर उनलोगों में इतना भी उत्साह शेष ना रह गया था फलतः वे बलुचिस्तान के रास्ते ही वापस लौटे....
अब उसके महानता के बारे में भी कुछ विद्वानों के वर्णन देखिए...
एरियन के अनुसार जब बैक्ट्रिया के बसूस को बंदी बनाकर सिकन्दर के सम्मुख लाया गया तब सिकन्दर ने अपने सेवकों से उसको कोड़े लगवाए तथा उसके नाक और कान काट कटवा दिए गए.बाद में बसूस को मरवा ही दिया गया.सिकन्दर ने कई फारसी सेनाध्यक्षों को नृशंसतापूर्वक मरवा दिया था.फारसी राजचिह्नों को धारण करने पर सिकन्दर की आलोचना करने के लिए उसने अपने ही गुरु अरस्तु के भतीजे कालस्थनीज को मरवा डालने में कोई संकोच नहीं किया.क्रोधावस्था में अपने ही मित्र क्लाइटस को मार डाला.उसके पिता का विश्वासपात्र सहायक परमेनियन भी सिकन्दर के द्वारा मारा गया था..जहाँ पर भी सिकन्दर की सेना गई उसने समस्त नगरों को आग लगा दी,महिलाओं का अपहरण किया और बच्चों को भी तलवार की धार पर सूत दिया..ईरान की दो शाहजादियों को सिकन्दर ने अपने ही घर में डाल रखा था.उसके सेनापति जहाँ-कहीं भी गए अनेक महिलाओं को बल-पूर्वक रखैल बनाकर रख लिए...
तो ये थी सिकन्दर की महानता....इसके अलावे इसके पिता फिलिप की हत्या का भी शक इतिहास ने इसी पर किया है कि इसने अपनी माता के साथ मिलकर फिलिप की हत्या करवाई क्योंकि फिलिप ने दूसरी शादी कर ली थी और सिकन्दर के सिंहासन पर बैठने का अवसर खत्म होता दिख रहा था..इस बात में किसी को संशय नहीं कि सिकन्दर की माता फिलिप से नफरत करती थी..दोनों के बीच सम्बन्ध इतने कटु थे कि दोनों अलग होकर जीवन बीता रहे थे...इसके बाद इसने अपने सौतेले भाई को भी मार डाला ताकि सिंहासन का और कोई उत्तराधिकारी ना रहे...
तो ये थी सिकन्दर की महानता और वीरता....
इसकी महानता का एक और उदाहरण देखिए-जब इसने पोरस के राज्य पर आक्रमण किया तो पोरस ने सिकन्दर को अकेले-अकेले यनि द्वंद्व युद्ध का निमंत्रण भेजा ताकि अनावश्यक नरसंहार ना हो और द्वंद्व युद्ध के जरिए ही निर्णय हो जाय पर इस वीरतापूर्ण निमंत्रण को सिकन्दर ने स्वीकार नहीं किया...ये किमवदन्ती बनकर अब तक भारत में विद्यमान है.इसके लिए मैं प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं समझता हूँ..
अब निर्णय करिए कि पोरस तथा सिकन्दर में विश्व-विजेता कौन था..? दोनों में वीर कौन था..? दोनों में महान कौन था..? यूनान वाले सिकन्दर की जितनी भी विजय गाथा दुनिया को सुना ले सच्चाई यही है कि ना तो सिकन्दर विश्वविजेता था ना ही वीर(पोरस के सामने) ना ही महान(ये तो कभी वो था ही नहीं)....
जिस पोरस ने सिकन्दर जो लगभग पूरा विश्व को जीतता हुआ आ रहा था जिसके पास उतनी बड़ी विशाल सेना थी जिसका प्रत्यक्ष सहयोग अम्भि ने किया था उस सिकन्दर के अभिमान को अकेले ही चकना-चूरित कर दिया,उसके मद को झाड़कर उसके सर से विश्व-विजेता बनने का भूत उतार दिया उस पोरस को क्या इतिहास ने उचित स्थान दिया है......!...?
भारतीय इतिहासकारों ने तो पोरस को इतिहास में स्थान देने योग्य समझा ही नहीं है.इतिहास में एक-दो जगह इसका नाम आ भी गया तो बस सिकन्दर के सामने बंदी बनाए गए एक निर्बल निरीह राजा के रुप में..नेट पर भी पोरस के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है.....
आज आवश्यकता है कि नेताओं को धन जमा करने से अगर अवकाश मिल जाय तो वे इतिहास को फिर से जाँचने-परखने का कार्य करवाएँ ताकि सच्चाई सामने आ सके और भारतीय वीरों को उसका उचित सम्मान मिल सके..मैं नहीं मानता कि जो राष्ट्र वीरों का इस तरह अपमान करेगा वो राष्ट्र ज्यादा दिन तक टिक पाएगा...मानते हैं कि ये सब घटनाएँ बहुत पुरानी हैं इसके बाद भारत पर हुए अनेक हमले के कारण भारत का अपना इतिहास तो विलुप्त हो गया और उसके बाद मुसलमान शासकों ने अपनी झूठी-प्रशंसा सुनकर आनन्द प्राप्त करने में पूरी इतिहास लिखवाकर खत्म कर दी और जब देश आजाद हुआ भी तो कांग्रेसियों ने इतिहास लेखन का काम धूर्त्त अंग्रेजों को सौंप दिया ताकि वो भारतीयों को गुलम बनाए रखने का काम जारी रखे और अंग्रेजों ने इतिहास के नाम पर काल्पनिक कहानियों का पुलिंदा बाँध दिया ताकि भारतीय हमेशा यही समझते रहें कि उनके पूर्वज निरीह थे तथा विदेशी बहुत ही शक्तिशाली ताकि भारतीय हमेशा मानसिक गुलाम बने रहें विदेशियों का,पर अब तो कुछ करना होगा ना..??? इस लेख से एक और बात सिद्ध होती है कि जब भारत का एक छोटा सा राज्य अगर अकेले ही सिकन्दर को धूल चटा सकता है तो अगर भारत मिलकर रहता और आपस में ना लड़ता रहता तो किसी मुगलों या अंग्रेजों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वो भारत का बाल भी बाँका कर पाता.कम से कम अगर भारतीय दुश्मनों का साथ ना देते तो भी उनमें इतनी शक्ति नहीं थी कि वो भारत पर शासन कर पाते.भारत पर विदेशियों ने शासन किया है तो सिर्फ यहाँ की आपसी दुश्मनी के कारण..
भारत में अनेक वीर पैदा हो गए थे एक ही साथ और यही भारत की बर्बादी का कारण बन गया क्योंकि सब शेर आपस में ही लड़ने लगे...महाभारत काल में इतने सारे महारथी, महावीर पैदा हो गए थे तो महाभारत का विध्वंशक युद्ध हुआ और आपस में ही लड़ मरने के कारण भारत तथा भारतीय संस्कृति का विनाश हो गया उसके बाद कलयुग में भी वही हुआ..जब भी किसी जगह वीरों की संख्या ज्यादा हो जाएगी तो उस जगह की रचना होने के बजाय विध्वंश हो जाएगा... पर आज जरुरत है भारतीय शेरों को एक होने की...........क्योंकि अभी भारत में शेरों की बहुत ही कमी है और जरुरत है भारत की पुनर्रचना करने की......
(-डा. दिनेश अग्रवाल
प्राध्यापक, यूनिवर्सिटी आफ पेन्सिलवेनिया)के अनुसार -
भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा गत दिनों हिमाचल प्रदेश में आयोजित एक परिसंवाद में विद्वानों का निष्कर्ष था कि सिकंदर विश्वविजेता नहीं था बल्कि वह डोगराओं के हाथों जम्मू में पराजित हुआ था। पाञ्चजन्य के 12 नवम्बर, 2006 के अंक में हमने उस परिसंवाद की विस्तृत रपट प्रकाशित की थी। इसी विषय पर डा. दिनेश अग्रवाल ने कुछ समय पूर्व एक शोधपरक आलेख लिखा था। डा. अग्रवाल न्यूयार्क (अमरीका) में स्टेट कालेज (यूनिवर्सिटी आफ पेन्सिलवेनिया) में प्रोफेसर हैं। यहां हम डा. दिनेश अग्रवाल के उसी आलेख "एलेक्जेंडर: द आर्डिनेरी" का अनूदित अंश प्रकाशित कर रहे हैं- सं.
"सिकन्दर ने भारत में कभी विजय प्राप्त नहीं की", इतिहास के धुंधलके में छिपा यह सत्य अब छन-छन कर बाहर आ रहा है। वास्तव में सिकन्दर तो पंजाब के तत्कालीन राजा पोरस से पराजित हुआ था। उसे अपने सैनिकों की प्राणरक्षा के लिए पोरस से एक सन्धि भी करनी पड़ी। क्योंकि पोरस की सेना के हाथों बड़ी संख्या में अपने सहयोगियों को मरता देख उसकी सेना में खलबली मच गई थी।
अपने विश्व-विजय अभियान में अनेक युद्ध जीतते हुए सिकन्दर ने फारस के राजा को हराने के बाद भारत पर हमला किया। उसने सिन्धु नदी पार की। तक्षशिला का तत्कालीन राजा आम्भी उससे आ मिला। आम्भी ने स्वयं ही सिकन्दर के सामने आत्मसमर्पण किया था क्योंकि वह पोरस से शत्रुता रखता था और सिकन्दर की सहायता से वह पोरस को हराना चाहता था। सिकन्दर की दु:खद पराजय और भारत में उसके विश्व-विजय के सपने के चूर-चूर हो जाने की कहानी की वास्तविकता को दरअसल ग्रीक इतिहासकारों ने छिपाया। ब्रिटिश राज्य में भी इतिहासकारों ने यही रुख अपनाया, लेकिन जैसा कि सत्य एक न एक दिन सामने आकर ही रहता है। अनेक यूरोपीय विद्वानों व इतिहासकारों द्वारा लिखे गए वृत्तान्त इस सन्दर्भ में दस्तावेज उपलब्ध कराते हैं और इतिहास के सामने एक भिन्न तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। कर्टियस, जस्टिन, डियोडोरस, ऐरियन और प्लूटार्क जैसे विद्वान इस सन्दर्भ में विश्वसनीय और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराते हैं कि सिकन्दर पोरस से पराजित हुआ था और उसे अपनी तथा अपने सैनिकों की जीवन रक्षा के लिए पोरस से सन्धि करनी पड़ी थी। भारत का "विजय अभियान" उसके लिए दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ और भारत से वापसी के समय उसकी सारी आशाएं धूमिल हो चुकी थीं।
इथियोपिक साहित्य में ई.ए.डब्ल्यू. बैस द्वारा लिखित "द लाइफ एण्ड एक्सप्लोइट्स आफ एलेक्जेण्डर" नामक दस्तावेज में निम्नलिखित विवरण मिलता है। "झेलम की लड़ाई में सिकन्दर की भयानक सैन्य हानि हुई, बड़ी संख्या में उसके सैनिक मारे गए। सिकन्दर ने महसूस किया कि अगर उसने लड़ाई जारी रखी तो वह पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। उसने पोरस से युद्ध रोकने का आग्रह किया। पोरस भारतीय परम्परा का सच्चा वाहक था इसलिए उसने शरण में आए शत्रु का वध करना उचित नहीं समझा। इसके बाद दोनों में एक समझौता हुआ और सिकन्दर ने उसके राज्य में अन्य क्षेत्रों को जोड़ने में सहायता की।"
श्री बैस आगे लिखते हैं-"सिकन्दर के सैनिक बुरी तरह टूट चुके थे और बड़ी संख्या में अपने साथियों की शहादत पर वे विलाप करने लगे थे। उन्होंने अपने हथियार फेंक दिये और आत्मसमर्पण के लिए आतुर हो उठे। लड़ने की उनमें तनिक मात्र इच्छा शेष नहीं थी। अपने सैनिकों की ऐसी मनोदेशा देखकर सिकन्दर ने भी युद्ध न करना ही उचित समझा और उसने पोरस से स्वयं निवेदन किया कि मुझे क्षमा कर दो। तुम्हारी बहादुरी व ताकत को मैं जान चुका हूं। अब मैं और दु:ख नहीं झेल सकता। मैं अपना जीवन समाप्त करना चाहता हूं। मैं नहीं चाहता कि मेरे सैनिकों की भी हालत मेरे जैसी हो। अपने सैनिकों को मौत के मुंह में धकेलने का मैं अपराधी हूं। किसी राजा के लिए इससे ज्यादा दु:खद क्या हो सकता है कि वह अपने सैनिकों को मौत के मुंह में धकेलने का जिम्मेदार सिद्ध हो।"
क्या यही है "सिकन्दर महान!" ये क्या किसी विजयी सिकन्दर के शब्द हैं जिसने पोरस पर विजय प्राप्त की? क्या कोई विश्वविजेता इस तरह के शब्द बोल सकता है? इतिहास की पुस्तकों में लोगों को सिकन्दर की जिस "विजय" और "पराक्रम" का वर्णन मिलता है वह उपरोक्त उद्धरण से कतई मेल नहीं खाता। हममें से अधिकांश लोगों ने स्कूली पुस्तकों में पढ़ा है कि सिकन्दर ने पोरस को पराजित किया था और इस बात की उसके मन में पीड़ा थी कि संसार में विजय के लिए अब कोई भू-भाग बचा नहीं है। शायद इसीलिए वह इतिहास में "सिकन्दर महान" कहा गया। लेकिन सिकन्दर के सन्दर्भ में प्राप्त नये दस्तावेज इस मिथक व मान्यता को झुठलाते हुए बताते हैं वास्तव में सिकन्दर उतना महान नहीं था जितना बताया जाता है। वह सिर्फ एक साधारण सिकन्दर ही था।
एक और मिथक, जो पाश्चात्य इतिहासकारों ने सिकन्दर के बारे में फैलाया है, वह यह है कि सिकन्दर बहुत बुद्धिमान व दयालु राजा था और उसके मन में बहादुर व साहसी लोगों के लिए बहुत आदर का भाव था। ऐसी और भी बातें कहीं जाती हैं जबकि वास्तविकता कुछ और है। न तो वह बहुत बुद्धिमान था और न दयालु। दस्तावेज बताते हैं कि वह बहुत क्रूर शासक था और अपने शत्रुओं को कड़े से कड़ा दण्ड देता था। जैसे बैक्ट्रिया का राजा बसूस अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए बड़ी बहादुरी के साथ सिकन्दर से लड़ा। युद्ध में पराजित होने के बाद जब एक कैदी के रूप में उसे सिकन्दर के सामने लाया गया, सिकन्दर ने अपने सैनिकों को उस पर कोड़े बरसाने तथा बाद में उसके कान व नाक काटने का आदेश दिया। बड़ी निर्दयता से सिकन्दर ने उसका वध किया। इसी प्रकार बहुत सारे फारसी सेना के सेनापति उसके हाथों मारे गए। अरस्तु के भांजे कलस्थनीज को सिकन्दर ने इसलिए मारा क्योंकि उसने फारसी राजाओं की नकल करते हुए सिकन्दर की आलोचना की थी। सिकन्दर ने अपने मित्र क्लाइट्स की भी हत्या क्रोध में आकर की। अपने पिता के विश्वासपात्र योद्धा पर्मेनियन को भी सिकन्दर ने मौत के घाट उतारा। इसी प्रकार भारतीय योद्धाओं, जो मसंगा से लौट रहे थे, का अंधेरी रात में सिकन्दर ने क्रूरतापूर्वक वध किया। ये "पराक्रम" सिकन्दर की महानता व दयालुता की कहानी नहीं कहते बल्कि उसे एक साधारण आक्रमणकारी और साम्राज्यवादी ही सिद्ध करते हैं|
अरे भाई असल में गोप या नंद वंसी अपने मूल स्थान से दूर कहि नहीं निकले श्री कृष्ण ने मूल क्षत्रियो और अपने पुत्रो को पश्चिम दिशा में भेज दिया और शूरसेनी यादव अलग जिनकी एक शाखा जादोंन हे इनका नंद वंसियो से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था
ReplyDeleteJadon kirar ek neech jaati se related hai keval karouri wale hi asli hai kyoki wo yaduvanshi ahir se nikle hai asli yadav yaduvanshi nandvanshi jaat hote hai gwal aur rajput dono utne pure yaduvanshi nahi hai
Deleteपंजाब हिमाचल हरियाणा दिल्ली पर तोमर राजपूत और कटोच राजपूतों का शाषन रहा है राजा पूरू के बाद|और अगर राजा पूरु भैस का_दूध बेचने वाली अहीर जाति के थे तो ग्वालों का शाषन होता|जैसे गुप्ता गुप्त वंश को अपना मानते हैं और काछी मौर्य वंश को माली गलोत वंश को|
Deleteकुँवर राजपूत की उपाधि है भैस चराने वाले कब से लिखने लगे|
Deleteबेटा राजपूत शब्द की उत्पत्ति ही 6 ठी शताब्दी में हुई थी। यदुवंशी तो सतयुग से ही है। और पोरस और सिकंदर का युद्ध 326 ईसा पूर्व हुआ था । राजपूत शब्द की उत्पत्ति से 900 साल पहले
DeleteYadav 👑 is king
Deleteइनको आईना दिखाओ ये जो मुगलपूत की औलाद यदुवंश के राजाओं को अपना बाप बता रहे जो😂😂😂
DeleteFake....aisi koi pussti nahi hoti ki aabhir ahir hai....koi references aur evidence nahi hai hai.....synonym pakad ker kaam nahi chalta....aise toh chandragupta maurya ko maurya....samudragupt ko Gupta....kacch waha ko kushwaha...mall ko mallah....lohara DYNASTY ko lohaar
ReplyDeleteMaanne waale bewkuufo ki kami nahi hai.....
Ved ke kisi part...page...line ...mein yadav...ahir...gawaal ka kahi ullekh tak nahi hai....
Ved vayaas ka kyaa wo toh khudd mallah ki putrri ka putrra tha....
Tu apne baap se puch Ka kr kii Yadav Ahir kya hai smjha madarchod
DeleteJaatiniwas me Ahir likkha rhta hai bc
Deleteअहीर और गूजर भैंसचराने वाले पैदाइशी गंवार होते हैं जो जरूरत पडने पर सनी लियोनी को भी अपनी जाति का बना सकते हैं|और वो रावण के भाई अहिरावण को भी दूध बेचने वाले अर्थात अहीर बता सकते हैं|अंग्रेजो ने गूजर अहीर कंजड हाबूडा को जरायम पेशे वाली श्रेणी में डाल रखा था|जिसके अंतर्गत इनके घूमने पर रोक लगा दी गयी थी
DeleteDELETE
Jay kumarJune 19, 2020 at 12:58 AM
कुछ राजपूत राजा और मुगलो के बीच वैवाहिक सम्बन्ध थे जैसे मान सिंह की रानी बीबी मुबारक(मुसलमान) और अकबर की पत्नी जोधाबाई|लेकिन तुम लोग अपनी सोचो तुम लोगों की बहू बेटियाँ तो राजपूत राजाओं के यहाँ नौकरानी होती थी और राजाओं के बिस्तर भी गरम करती थीं सबूत चाहिये गोत्र का अर्थ होता है जिससे इन्सान पैदा होता है या उत्पन्न होता है दिल्ली के तोमर राजपूत राजा कोशल सिंह हुए जिन्होने कोस्लिया नामक जगह बसाई जहँ अहीर ग्वाला जाति के लोग रहते हैं जिनका गोत्र कोशल है और वो राजा कोशल सिंह तोमर की अहीर नौकरानी से पैदा हैं और मोहिल गोत्र के अहीर मोहिल चौहान राजाओं की अहीर नौकरानी की नाजायज पैदाइश हैं|और जनता यानि कि तुम लोगो की बेटियों और बहुओं को तो मुगल जबरदस्ती उठाकर हरम में ले जाते थे और मटका फुला के छोड देते थे|तुम लोगों के ऊपर हुए अत्याचार को मुगल अपनी किताबों में तो नहीं लिखेगे|
https://youtu.be/x8EGwh90Tds
Delete��लाल कोट (राय पिथोरा) किले (दक्षिण दिल्ली)
भाई जो प्रूफ करना है सिर्फ शिलालेख और अभिलेखों पर करो वो क्या कहते है उन्हीं राजाओं के
तुंगध्वज राजा जो पांडवो के 84 पीढ़ी में हुए और तुंगध्वज के वंशज तुंगड़ कहलाये तो पहले तूंगड़ गोतर था
फिर आगे चलकर ये तंवर कहलाये और आगे चलकर राजा तोम हुए जिनके वंशज तोमर कहलाये
और आपको नहीं पता जब दिल्ली से तंवरो का राज उसके बाद भद्रवती में रियासत बनाई थी 12वी सतबादी में और वहीं से उनके कुछ वंसज ने भद्रावती से निकलकर ग्वालियर में जा बसे और ग्वालियर में रियासत बनाई पर भद्रावती रियासत को 17वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया और ग्वालियर की रियासत को 18वी शताब्दी में सिन्धिया राजाओं ने खत्म कर दिया
तुंगध्वज( तुंगपाल) ( कर्नाटक में तुंग भद्र नदी के किनारे तुंगभद्र नामक राज्य बसाया वहाँ आदि गद्दी स्थापित की ) तुंगध्वज के वंशज तूंगड़ कहलाए और तूंगड़ से तंवर बने
- > अभंग
- > ज्वालपाल ( जवलपाल )
- > गवाल ( गवल ) ( इनके नाम पर बाद में गोपाचल पर्वत पर गवालियर राज्य बसाया गया )
- > लोरपिण्ड
- > अडंगल ( अदंगल )
- > गणमेल
- > नभंग
- > चुक्कर ( चुक्कार )
- > तोम (राजा तोम के वंशज तोमर कहलाये और फिर आगे चलकर ग्वालियर पर राज किया)
- > द्रव्यदान
- > द्रुज्ञ
> मनभा ( मनभ )
- > कारवाल ( करवल )
> कलंग
- > कंध
- > अनंगपाल ( इन्द्रप्रस्थ - महाभारत सम्राट -
Inscrition of Tanwar ��
The territory ruled over by the Tanwar (Tungad) comprised of mod en east Punjab . Hariyana and the upper Doab of the rivers Ganges and Jamna . The first available historical reference to the Tanwar (Tungad) family is the inscription undated but pertains to the time of Mahendra Pal , the Gurjar emperor of Kanaui who ruled 890 to 910 A . D . In this inscription Gogga , adescendant of Bhunath Jaula is men tioned as a dignified administrative officer of the emperor Mahendra Pal the Gurjar Pratihar . Bhunath means , the lord of earth , a Raja . Dr . Bhandarker has interconnected this Bhunath Jaula with Maharaja Torman Javul
( Inscription now in Lahore Mu seum ) and Jaola of Kara and had concluded by these three inscrip tions that Tanwar (Tungad) and Pratihars are Gurjars . The same view had been adopted by Dr . A . F . Rudolf Hornale , Mr . V . A . Smith , Mr . Rapson , K . M . Munshi , Yatendra , Kumar Verma etc . etc . in their history books . Rahim Dad Khan Maulai Shadai writes . " In 816 , Nag Bhata Raja of Gujar Qaum , ( Gurjar race ) conquered Kanauj . The Gujars ruled there for two countries . Among them Raja Bhoj ( Mihir Bhoj ) was most famous . " A branch of the Gujars was Tanwar(Tungad ) who founded the kingdom at Delhi . [ See page 56 Tarikh Janatul Sindh ( Written in Sindhi language ] . Also T . G . page 295
लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज थे।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तंवर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती
(गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तंवर था
1551 सदी का शिलालेख��
तंवर( तोमर )वंश - 282 . गुर्जर का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास सिधे संवतु 1551 वर्षे
गूरजैर श्री राजमानसीघदेवा वचनतु पूथाना सटोजरामलगगेर सारयो । । राजा की तसलिमा कामु जायै । । सुत्रधरे पजू महलनं खीरंसु मनूव सानेग समा बढ़ई रमू सिलहरी गर्ने धनूत मई । चादु । टूवल सूवाकयो वोहरीत्र ।
उपरोक्त शिलालेख का अनुवाद इस प्रकार से है : - . संवत् 1551 ज्येष्ठ बुदी - 2 गुर्जर श्री मानसिंह देव के आदेश पालना में सागर ( गगेर ) को स्वच्छ किया गया । इस शिलालेख की पहली पंक्ति से अवगत होता है कि राजा मानसिंह तोमर गुर्जर था । जून 1988 में भारतीय पुरातत्व सर्वे विभाग ने खंडार सवाईमाधोपुर ( राजस्थान ) के किले ( दुर्ग ) में काफी शिलालेख उपलब्ध किये हैं जिनमें एक शिलालेख में राजा मानसिंह तोमर ग्वालियर को स्पष्ट शब्दों में गुर्जर लिखा है ( श्री प्रकाश बाफना - नवभारत टाइम्स ( हिन्दी ) जयपर , 7 जून , 1988 ईस्वी पृष्ठ . 2 कालम 5 - 5 ) । यह शिलालेख विक्रम सम्वत् 1568 का है जोकि उसी से अवगत होता है । खंडार दुर्ग सवाई माधोपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है ।
Yaduvanshi nandvanshi gwalvanshi
ReplyDeleteGwal gadariya hote h gwalo ke gotra gadariyao ke gotra ek h hote h
ReplyDeleteJadon banzare hote hai kuch kiraar jaati se samjhe aur ahiro ka naam pritviraaj raso aur cunral tond ki 36 rajvansh mai pahla hai sabhi bade itihaaskaro ne mana Yaduvanshi aheer hi sabse purane ksatriya madhkaal mai kuch ek rajputo mai shamil ho gye
DeleteYe saide jiski he or ye story jisne likhi he usko hi puchhlo ki ahir ka koyi ullekh nahi he yadav sirf rajput hi he jadeja.chudasma.bhati. yadav or ahiro ka koyi rista nahi he ye purano or gitaa me he gita or purano or any pustko me ahiro ka koyi ullekh nahi he
ReplyDeleteLawde ep rakhte hai tumko yadav ji samjha
DeleteAhiro ka or yadvo ka koyi len den nahi he yadunashi sirf aaj ke jadeja.chudasma.bhati rajput hi he gita or purano or any koyi pustko me ahiro ka ullekh nahi he
ReplyDeleteMadrachod phle Dekh lo gita aur puran.....ullekh ki baat krna
DeleteAbe chutiye yadu kul kshatriya kul he or nand baba gwale the yadav nhi chutio
DeleteAbe chutiye mugal put
DeleteAbhir chor 🤣🤣
DeleteMera name he (jam devubha jadeja) gujrat se hu jamnagar se kisiko bhi mujse koyi bat karni he to (@jamdevubha jadeja)mera insta id he bat karlo mujse nakli yaduvanshi o salo
ReplyDeleteजय महाराणा🙏🚩
Bhai ap bas ek baat bata do kabse konsa raja yadav ke opposite jadeja Bhati likne laga koi praman nahi hai tumre pass samje aur ha baat rahi nakli aur asli ki wo samne aa jana pura ithas bata dege bhai
DeleteYadavo ka to vinash hogya he to ye yadav kon he bhai btao yadav nhi charwahe he nand baba ke pariwar ke yadu nhi yadu chandravanshi Kshatriya the .gandhari ke shrap se yadu kul ka vinash hogya he to ye yadav kon he
DeleteBsdk naash ka matlab khatam nhi hota bsdk
DeleteKaafi log maare gaye the par bachhe aur aurate bacha li gayi thi shri krishna dwaara aur Hastinapur bhej di gayi thi
Samjhe laude
भाई आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं,
ReplyDeleteजारी रखिये इन मुगलपुत्रों को भौंकने दें।
गोपः,अहीर,गुप्त,राय,राव,चौधरी,सिंह,ठाकुर ये सब यदुवंशियों की उपाधि है।
इनलोगों की social media पर हमलोग अच्छे से पेलते हैं।
और रही बात ग्राउंड की तू जमीनी हकीकत तो आपसे छुपी हुई है नहीं,ये कुत्ते मुगलों के औलाद हमें देखते ही अपनी पैंट गीली कर देते हैं।
बिहार के औरंगबाद में 1987 में 8 यादवों के हत्या के बदले दो गांव को मुगलपुत विहीन बना दिया था बिहार के खूंखार यादवों ने( गांव- दलेलचक,बघुआरा) और 68 मुगलपुत्र मारे गए थे।
अहीर और गूजर भैंसचराने वाले पैदाइशी गंवार होते हैं जो जरूरत पडने पर सनी लियोनी को भी अपनी जाति का बना सकते हैं|और वो रावण के भाई अहिरावण को भी दूध बेचने वाले अर्थात अहीर बता सकते हैं|अंग्रेजो ने गूजर अहीर कंजड हाबूडा को जरायम पेशे वाली श्रेणी में डाल रखा था|जिसके अंतर्गत इनके घूमने पर रोक लगा दी गयी थी
Deleteकुछ राजपूत राजा और मुगलो के बीच वैवाहिक सम्बन्ध थे जैसे मान सिंह की रानी बीबी मुबारक(मुसलमान) और अकबर की पत्नी जोधाबाई|लेकिन तुम लोग अपनी सोचो तुम लोगों की बहू बेटियाँ तो राजपूत राजाओं के यहाँ नौकरानी होती थी और राजाओं के बिस्तर भी गरम करती थीं सबूत चाहिये गोत्र का अर्थ होता है जिससे इन्सान पैदा होता है या उत्पन्न होता है दिल्ली के तोमर राजपूत राजा कोशल सिंह हुए जिन्होने कोस्लिया नामक जगह बसाई जहँ अहीर ग्वाला जाति के लोग रहते हैं जिनका गोत्र कोशल है और वो राजा कोशल सिंह तोमर की अहीर नौकरानी से पैदा हैं और मोहिल गोत्र के अहीर मोहिल चौहान राजाओं की अहीर नौकरानी की नाजायज पैदाइश हैं|और जनता यानि कि तुम लोगो की बेटियों और बहुओं को तो मुगल जबरदस्ती उठाकर हरम में ले जाते थे और मटका फुला के छोड देते थे|तुम लोगों के ऊपर हुए अत्याचार को मुगल अपनी किताबों में तो नहीं लिखेगे|
DeleteFr Gurjaro ko apna baap ku khete ho tmhari Rajput jati ka aj tk puri history mai ek Shilalekha nh mila or jb bolte tm khud kya ho phele wo padho😆
Deleteरानी लक्ष्मी कुमारी, चुडावत, (राजपूत ) ने राजस्थान का एक लंबा इतिहास लगभग 800 पृष्ठों पर लिखा है। 10 वीं शताब्दी ईस्वी की एक सत्य घटना पर वह लिखती हैं, देव नारायण गुर्जर ने अपने बिखरे परिवार के सदस्यों को एकत्र किया । उसके चचेरे भाइयों में से एक फर्श कालीन पर बैठा था, देवा नारायण ने उसे बुलाया, हे भाई, वह राजपूतों के बैठने की जगह है, तुम यहाँ सिंहासन के पास आओ। उन्हें लगता है कि गुर्जर वर्ग सभी राजपूतों के लिए एक श्रेष्ठ वर्ग है.
गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द - ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत
गुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह राजपूत)
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ReplyDeleteBsdk ko sayad pta nahi h ki yadav log kya hote h jis din pkda gya na us din sb mil kr gr marega tumhara or un muglo ka v
DeleteJo randwa gandu anpadh hota he usko ajtak ye nahi pata ki bhosdike gwar zahail charwahe raja poras puruvansh ke vansaj he sale....puruvans me kaurav pandav poras abhimanyu parikchit angalpal tomar jaise raja or rajput hue he...
ReplyDeleteLr bhosdike yayati ka 5 bete se alag alag vansh he sale gwar
Yadu se yaduvahsh chala he
Puru se puru vansh chala he
Gandu puruvansh or poras ma yadu or yaduvsh se koi lena dena nahi he yadu or puru bhai the yayati ke vansaj ...yaduvanshi sirf yadu ke santan uske char bete ko kaha gaya he gandu randwe gwar anpadh zahail teri ma ka bhosda sale janta kuch nahi he randwe agaya gand marane bhosdike banne cahala he krishn ka vansaj bhosdike tujhe to sahi se yaduvansh puruvansh or chandravns ka jankari bhi nahi he gandu...
tera bap ne to kaha rajput log muglo ki najayaj olad hai randwe
DeleteGwar charwahwa gaderiya mahiskar bhais palane wale nadvanshi gwalvanshi gwar log kam akal bhosdiwalo...poras raja puru ka vansaj he ...randi ke bacho padhayi likhayi karo randwo puru vansh ka he poras uska yadu vansh me janm nahi hua he ...bhosdiwalo randi ke gand marwane gaye the padhne ke time bhosdiwalo vansh kise kehete he wo bhi nahi mapum ganduo tumlogo ko...or banne chale ho yaduavshi salo gwal vanshi charwahao poras ka yaduavns me janm nahi he ganduo...padhayi karo chutiyo padhayi..
ReplyDeletemadar chod abe sale rajput yadav asli warrior hai pure warrior hai samjha granth padh tab pata chalega
ReplyDeleteyadav real warrior of india
ReplyDeletejay yadav jay madhav jai krishna jai yaduvansi
ReplyDeletejai yaduvansi jai yadav
ReplyDeleterani jodha ko chodne wala musalman akbar
ReplyDeleteऔर रास जिनके बहन बेटी के साथ सारी दुनिया ने रचाया
Deleteahir yani nidar jai yadav jai madhav jai yaduvansi
ReplyDeletejai yadav jai madhav jai yaduvansi
ReplyDeleteAhir matlab tabele ki pedaish
ReplyDeleteAhirundiya Kahi bhi gaand Marwa leti thi
Ho Sakta h kisi Thakur ne pel diya hoga Ahirundiya Ko usi k Vansaj aaj Yaduvanshi Kshtriya banana chahte h
जो ते बोल रहा उसका कोई प्रमाण नहीं बेटा... पर तेरी रंडीपूत जोधाबाई ने अकबर समेत मुगलों के लंड लिये और तब जाकर #मुगलपूत की स्थापना हुई 😂😂 और पैदा हुआ जहांगीर 🔥🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣
Deleteइस बात से तू सहमत हैं ना?? 😂😂
मुगलों से गांड फटने पर तुमने बहन बेटियों को मुगलों के लंड के हवाले कर दिया 🤣🤣🤣
बात करता है स्वाभिमान की😂😂
जोधाबाई का इतिहास मे कोई नाम नही है। ये सब झूठ था और दुष्प्रचार है क्षत्रियो के खिलाफ है। जोधाबाई एक काल्पनिक नाम ऐ असली नाम मरियम-उज- जमानी है जो एक पर्शियन दासी की बेटी है उससे अकबर की शादी हुई है। तुम अपना औकात देखो कि तेरे बाप दादा तो मुगलो के गदहो की लीद साफ करते थे और मुगल तो क्या उनके कारिंदे अर्थात कोई भी मुसलमान ही तुम्हारे घरो से तुम्हारी बहन बेटी उठा ले जाते थे। मुखलो के अत्याचार तेरे जैसे जातियों पर औरतो पर कहर बनकर टुटी इज्जत तुम्हारी नीलाम हुई। अब शर्म कैसी। और यदुवंश तो महाभारत काल मे ही खत्म हो गया फिर तुम कहाँ से पैद हो गया। राजपूत की बराबरी करनी है तो राजपूत को क्षत्रियो को बाप बना ले।तु तो म्लेच्छ है। कहते है कि इतिहास हमेशा दुहराता है। आज का इतिहास भी तेरा ये है कि मुसलमान तेरे भाई है जिनके आथ आज मिलकर देश के खिलाफ गजवा-ए-हिंद के षड्यंत्र पर वोट करता है।
Deleteतुम यवन समान है अर्थात मुसलमान समान। इसीलिए तो मथुरा नही जाता । भगवान श्रीकृष्ण का वंशज होता तब न जाता। जाओ वहाँ मुसलमान कृष्ण जन्म स्थान पर मस्जिद बना दिया है। मंदिर बनाकर दिखा यदि क्षत्रियो की बराबरी करता है तो। जाएगा क्यो। घरो मे छुप जाना। मंदिर हम बनायेगे। बच्चे जब पैदा कर देते है तब तु खेलाने आ जाता है।
बेशर्मी की भी सीमा होती है।
Jodhabai ahirin thi. tere yaha to shuru se rash rachaya gaya hai there chhoriyon ke sath. aaj bhi musalman rash racha rahe hai aur himmat hai to ja mathura. Waha nahi jayega
DeleteAlso read इतिहास में सबसे अच्छे दिखने वाले सैनिक / योद्धा कौन थे? here https://hi.letsdiskuss.com/who-were-the-best-looking-soldiers-warriors-in-history
ReplyDeleteअपनी ढपली अपना राग।
ReplyDeleteजो लिखना हो लिख लो लैकिन हक़ीकत वही है जो इतिहास की किताबों मे दर्ज़ है
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार अहीर,गडरिया,जाट,वर्तमान गूजर शूद्र जाती हैं जिन्हें छत्रिय ब्राहमण की गुलामी के लिए रखा गया।
रही बात भगवान किषन की तो वो कुल से छत्रिय थे लैकिन उनकी परवरिश एक ग्वाला ने की थी ईसलिए सारे अहीर और ग्वाला उनसे अपना वंश जोड़ते हैं साले चूतिये।
अबे गधे हिन्दू धर्म ग्रंथो में अहीर गड़रिया जाट गुज्जर को ही क्षत्रिय कहा गया है और भगवान श्री कृष्ण जी को कार्टून में ग्वाला गड़रिया और नाटक में अहीर ग्वाला ही कहा गया है।।।।।
Deleteहाँ मुगलो के गदहो की लीद साफ करने वाले। अब तु भी क्षत्रिय है।
DeleteYaduvanshi origin :
ReplyDeletehttps://infolog.in/origin-story-of-yaduvanshi-yadavas-history/
अबे जितने भी Randi pedais जिसके कोई itihas वो Randi ka putr दूसरे के इतिहास जलते हैं साले मुगल जब मुगल का औलाद राजपूत मराठा जाट गुर्जर शब्द कोई जानता नहीं था उस bkt यादव अहिर पूरा विश्व विख्यात अपने कोठे जो बैठकर आयी तेरी माँ उससे पूछाna कोण अहिर
ReplyDeleteभगवान श्रीकृष्ण से लेकर आजतक मां का दूध पीने वाले ही वीर शेर जांबाज हुए है। इसलिए रगों में खून दौड़ता है पानी नहीं। ऐ वे वीर सपूत हैं जो किसी की दलाली और अंधभक्ति नहीं किए।
ReplyDeleteआज भी सीमा पर अहीरों का ही बोलबाला है दुश्मन हो या अधर्म-अधर्मी सबको सबक सिखाने वाला अहीर ही हैं। समाज देश के लिए आवाज व विरोध करने वालों में अहीर ही आगे हैं।
बाकी तो दलाली और भोकने वाले पालतू...हैं किसी से छूपा नहीं।
अरे कायरों आज समाज देश को किस दिशा में धकेल रहे हो।जरा भी शर्म नहीं इंसानियत नहीं, इतिहास बता रहे हो।
अरे केवल भौकने वाले मूर्खों जो आज जैसा है वो कल भी वैसा ही था, अभी भी अकल नहीं आई तो आगे भी वैसा ही रहेगा।