*#अहीर_रेजिमेंट_क्यों_जरुरी_है ?*
(सभी यादव भाईयो से अनुरोध है कि पूरा पोस्ट पढ़े और शेयर करे)
• बंधुओ मै आज फौज में अहीर (यादव ) रेजिमेंट की क्या जरुरत है और इस के क्या फायदे हैं , उस के बारे में सब ग़लतफहमी दूर करने का प्रयास इस लेख के ज़रिये कलम से कर रहा हूँ –
• फौज ( थल सेना ) में सिपाहियों (अफसरों और क्लर्क की नहीं )ज्यादातर भर्ती (रिक्रूटमेंट ) जाति /क्षेत्र /मज़हब के आधार पर ही होती हैi सन 1857 के संग्राम के बाद अंग्रेजो ने सोचा की अगर भारत को गुलाम बनाये रखना है तो एक ऐसी फौज खड़ी करनी पड़ेगी जिसकी निष्ठा सिर्फ उसकी जाति /क्षेत्र /धर्म पर हो न की भारत के प्रति i और इस दिशा में उन्होंने जाति/क्षेत्र और धर्म आधारित रेजिमेंट बना दी i आज फौज में तीन मुख्य लड़ने वाले अंग है – इन्फेंट्री , तोपखाना और टैंक (कैवेलरी ) – और इन तीनो अंगो और इंजिनियर विंग में तक़रीबन सारी भर्ती जाति /क्षेत्र /धर्म के आधार पर होती है i उदाहरण के लिए जैसे गढ़वाल रेजिमेंट है – गढ़वाल रेजिमेंट में सिर्फ गढ़वाली ही भर्ती किये जातें हैं (गढ़वाल उत्तराखण्ड राज्य का एक क्षेत्र है ) और डोगरा रेजिमेंट में सिर्फ डोगरा भर्ती किये जाते हैं , सिख रेजिमेंट में सिर्फ सिख (वो भी सिर्फ जट सिख ) भर्ती किये जाते हैं i इसी प्रकार जाट , राजपूत , महार , सिख लाइट इन्फेंट्री , मराठा , डोगरा नाम की रेजिमेंट जाति आधारित और राजपुताना राइफल्स, गढ़वाल राइफल्स , kumaon , मद्रास आदि क्षेत्र आधारित रेजिमेंट हैं i ये एक तरह से जाति/क्षेत्र /धर्म आधारित आरक्षण है i सबसे बड़ा तमाशा ये है कि भारतीय सविंधान या किसी न्यायालय से इस आरक्षण को कोई मान्यता प्राप्त नहीं है i ये खेल अंग्रेजो ने अपने वफादारों के लिए शुरू किया था और आज़ाद भारत में आज तक चल रहा है i ये खत्म इस लिए नहीं हो रहा क्योंकि इस अवैध आरक्षण की मलाई सिर्फ कुछ मुटठी भर लेकिन बहुत ही मज़बूत जातियां खा रही हैं और सम्पूर्ण समाज इस हकीकत से अनजान है i
• अहीर रेजिमेंट के फायदे –
• 1. एक रेजिमेंट में करीब 25000 हज़ार जवान होते हैं , अगर हमारी रेजिमेंट होगी तो इस में सिर्फ अहीरों के बच्चो को ही रोज़गार मिलेगा i
• 2. कोई भी जवान इस से रिटायर होता है या शहीद हो जाता है तो उस की जगह सिर्फ अहीर ही भर्ती होगा i obc में 4500 जातियां आती हैं , अगर एक यादव रिटायर होता है या मर जाता है तो उस की जगह एक obc ही आएगा लेकिन जरुरी नहीं की वोह यादव आएगा , लेकिन फौज में जाट के बदले जाट और गढ़वाली के बदले में गढ़वाली ही आता है, इन जाति /क्षेत्र आधारित रेजिमेंट में i क्या ऐसा आरक्षण कभी देखा है ?
• 3.जब भी कोई बहादुरी दिखाई जायेगी तो जिस की रेजिमेंट होगी उस ही का नाम होगा
• 4.जब कंधे पर “अहीर ” लिखा होगा तो पहचान मिलेगी और जवान कहीं भी जाएगा तो उस को अपना नाम बताने की जरुरत नहीं है
• 5 . आने वाले दौर में सब डिपार्टमेंट सिवाए – फौज , पुलिस और टैक्स विभाग के , सब का निजीकरण हो जाएगा और नौकरियां प्राइवेट सेक्टर में चली जायेंगी तो आरक्षण का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा i सिर्फ उपरोक्त तीन महकमों में ही आरक्षण रहेगा i और सब से ज्यादा रोज़गार फौज में ही है (आज तक़रीबन 13 लाख) i
• 6. फौज को जवान रखना पड़ता है इस लिए सब से ज्यादा भर्ती हर साल फौज में ही होती है क्योंकि इस में रिटायरमेंट की उम्र 58 या 60 साल नहीं होती i जब आप के नाम की कोई रेजिमेंट होगी तो सिर्फ आप के ही बच्चो को रोज़गार मिलेगा i
इन्फेंट्री में जातिगत ढांचा –
1 . जाट रेजिमेंट – सारे जाट (सिर्फ एक बटालियन अजगर यानी अहीर , जाट, गुजर और राजपूत ) एक रेजिमेंट में करीब 20 -25 बटालियन होती हैं और हर बटालियन में करीब 1000 आदमी होते हैं
2 . राजपूत – 50 % राजपूत , 30 % के करीब गूजर और बाकी 20 % में ब्राहमण , बंगाली , मुस्लिम आदि
3 . गढ़वाल – 100 % गढ़वाली
4. डोगरा – 100 % डोगरा
5 . kumaon – 75 % कुमाउनी और 22 % अहीर और बाकी ब्राहमण और राजपूत
6 . सिख – सारे जट सिख
7 . सिख लाइट इन्फेंट्री – दलित सिख ( मज़हबी और रामदासिया )
8 . गोरखा – सारे गोरखा
9 . मद्रास – सारे दक्षिण भारत के लोग
10 . मराठा – सारे मराठा
11 . पंजाब – सिख और डोगरा (मुट्ठी भर कुछ और )
12 . बिहार – 50% आदिवासी , 50 % बिहारी
13 . नागा – 75 % नागा , 25 % कुमओनी
14 . लद्दाख – सारे लद्दाखी
15 . जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री – सारे कश्मीरी
16 . जम्मू कश्मीर राइफल्स – सारे कश्मीरी
17 . राजपुताना राइफल्स – 50% राजपूत , 45% जाट और मुट्ठी भर गूजर , मुस्लिम , अहीर
18 . ग्रेनेडियर्स – ज्यादातर राजपूत , जाट और डोगरा , मुट्ठी भर अहीर , गूजर , मुस्लिम
19 . गार्ड्स – सब जातियां
20 . आसाम राइफल्स – सारे पहाड़ी और कुछ बाकी जातियां
21 . राष्ट्रीय राइफल्स – सारी जाति आधारित
22 . महार – दलित महार और मुट्ठी भर दूसरी जातियां
23. तोपखाना – ज्यादातर जाति आधारित – सिख , जाट , राजपूत , ब्राहमण , मुस्लिम ,अहीर , गढ़वाली , गोरखा ,डोगरा आदि
24. आर्म्ड (टैंक) – ज्यादातर सिख , डोगरा ,राजपूत और जाट , मुट्ठी भर बाकी जातियां
25. इंजिनियर – ज्यादातर सिख , मराठा और मुट्ठी भर बाकी जाति ,
26.President Bodyguard (राष्ट्रपति के अंगरक्षक ) – जाट,राजपूत और सिक्ख
पौराणिक काल से ही अहीरों का शस्त्रों व सेना से अटूट नाता रहा है i “अहीर” शब्द संस्कृत के “आभीर ” शब्द का बिगड़ा हुआ स्वरुप है जिसका अर्थ है – निर्भीक i यादव वीरों और उनकी अजेयी नारायणी सेना ने महाभारत के युद्ध में अपना बेजोड़ शौर्य प्रदर्शित किया था i प्राचीन समय में तो कई राज्यों में सेनापति का पद सिर्फ अहीरों के लिए ही आरक्षित था i नर्मदा के तट पर सर्वप्रथम समुद्रगुप्त की विजयवाहिनी को रोकने वाले वीर अहीर ही तो थे i फिर दासता का युग आया – तुर्कों का शासनi लेकिन अहीर फिर भी अपनी तलवारों का शौर्य दिखलाते रहे i करनाल के युद्ध में वो शेर का बच्चा शमशेर बहादुर राव बालकिशन , अपने 5000 अहीर रणबांकुरों के साथ उस लूटेरे नादिरशाह से जूझ गया i नादिरशाह ने अहीरवाल की तलवारों की दिल खोल कर प्रशंसा की दिल्ली के बादशाह के समक्ष i इस के बाद फिरंगियों का युग आया i 1803 में एंग्लो – मराठा युद्ध में अहीरवाल राव तेज़ सिंह जी के नेतृत्व में अपने भाई मराठों के साथ खड़ा था लेकिन मराठा पराजय ने अहीर रियासत को अंग्रेजो का बैरी बना दिया i फिर , सन 1857 में समस्त हिन्द में बदलाव की उम्मीद ने अंगडाई ली i अहीरों की तलवारे फिर चमकी रणखेतों में i राव किशन सिंह जी की “मिसरी” चारण – भाटों के वीर रस के स्वरों में समा गयी i वीर अहीर एक बार फिर नसीबपुर में रणभूमि को लाल लहू से रंगने को तैयार थे i नसीबपुर में अहीरवाल की तलवारें विजय हासिल करने ही वाली थी कि एक अनहोनी हो गई i राव किशन सिंह जी फिरंगी सेनापति जेर्राद को काट कर बैरी से जूझते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए i हिन्द के गद्दार फिरंगियों से मिल गए i नसीबपुर की पराजय अहीरों को लील गई i वीर अहीरवाल को खण्डित कर दिया गया और सेना में अहीरों की भर्ती पर विराम लगा दिया गया i अंग्रेजो ने 1857 की क्रांति के बाद जाति आधारित फौज का गठन किया, जिस की वफादारी सिर्फ अंग्रेजो और जाति विशेष के प्रति थी न की मादरे वतन के लिए i अहीरों की जगह कुछ अंग्रेजपरस्त जातियों को फौज में स्थान मिला i अहीरवाल बिखर गया क्योंकि इस अर्ध – मरुस्थल व जल – विहीन भूमि में अहीर अपनी तलवार का खाते थे i पर प्रथम विश्व – युद्ध में जब अंग्रेजो को सैनिको की जरुरत पड़ी तो फिर उन्हें अहीर कौम की याद आयी i प्रथम विश्व – युद्ध ने अहीर सैनिक परम्परा को प्राणवायु प्रदान करी i प्रथम विश्व -युद्ध में अहीरों ने अपने शौर्य का ऐसा जलवा बिखेरा कि दितीय विश्व -युद्ध में करीब 39 हज़ार यदुवंशी मोर्चे पर थे जो कि किसी भी हिन्दू जाति की संख्या व उसके सैनिको के अनुपात में सर्वाधिक थे i बर्मा के मोर्चे पर अहीर कौम के शौर्य का परचम लहरा दिया -उमराव सिंह जी , विक्टोरिया क्रॉस नेi लेकिन , 1940 में सिंगापुर में अहीर सैनिको के विद्रोह ने अंग्रेजो के मन में इस जंगजू कौम का खौफ पैदा कर दिया और इस वजह से पृथक अहीर रेजिमेंट का गठन ना हो सका i 15 अगस्त 1947 में गुलामी की जंजीरे टूटी व नये भारत का उदय हुआ i फिर से अहीरों में उम्मीद जगी की अब न्याय होगा और उनकी रेजिमेंट बनेगी 1948 में अहीरों ने माँ भारती को अपने खून का तिलक किया कश्मीर मोर्चे पर i फिर आया 1962 , रेजांगला – 18 नवम्बर दीवाली के दिन, रणबांकुरे अहीरों ने खून की होली खेली – हिमालय की सफ़ेद बर्फ को अपने और अपने दुश्मनों के लहू से लाल रंग दिया i पर देखिये दुर्भाग्य , जब स्वर -सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने मुल्क के शहीदों के लिए “ए मेरे वतन के लोगों” गीत गाया तो उस में”कोई सिख, कोई जाट, मराठा तो थे” लेकिन अहीर नहीं थे i इस अपमान की वजह साफ़ थी – जब तक पृथक अहीर रेजिमेंट नहीं होगी , तब तक अहीर शौर्य को उचित सम्मान नहीं मिल सकता , जब तक कंधे पर “अहीर ” नहीं लिखा होगा , तब तक कौम का इतिहास अन्धकार में ही रहेगा i फिर 1965, 1971 पाकिस्तान, 1986 श्री लंका और 1999 कारगिल में अहीर खून तो खूब बहा लेकिन रेजिमेंट नहीं मिली i देश की सबसे बड़ी पंचायत में अहीरों ने ऐसे लोगों को भेजा जिन्होंने कौम की इस मांग को कभी अपनी आवाज़ नहीं दी i अपने निजी स्वार्थ और कायरता की वजह से उन्होंने कौम की इस जायज़ मांग को वज़न दिया ही नहीं i ये कैसी विडम्बना है – सिंहो की सरदारी सियारों के हाथ में थी i Lions being led by Donkeys i दिल्ली के आका भी अहीर रेजिमेंट के निर्माण में बाधाएं खड़ी करते रहे – कभी सेकुलरिज्म की आड़ में तो कभी जातिवाद के नाम पर i तोपखाने में अहीरों की नफरी को कम कर दिया गया , उनकी यूनिट्स को तोड़ दिया गया i अन्याय पर अन्याय होता रहा और अहीर नेतृत्व मौन रहा i इस को क्या कहें – कायरता , कमजोरी या कुछ ओर ? आम अहीर को तो रेजिमेंट के फायदे का ही इल्म नहीं था , अलग रेजिमेंट का ये प्रभाव होगा –
1.कौम के नौजवानों को रोज़गार मिलता और समाज में सम्मान मिलता
2. कौम को पृथक रूप से पहचान और सम्मान मिलता
3. कौम के बहाए गए खून को वीरोचित सम्मान मिलता
4. अहीर रेजिमेंटल सेंटर में रोज़गार , शिक्षा व मेडिकल की सुविधाएं मिलती
हमारा राष्ट्र – प्रेम , हमारी खुद्दारी और बागी तेवर देख कर अंग्रेजो ने यादवों को एक बागी कौम करार कर दिया था i वीर लेकिन बागी अहीरवाल के कई टुकड़े कर के मुल्क के गाद्दारों को दे दिए गए और एक मर्द कौम को उस के दो प्रमुख हथियारों- हल और सेना से दूर करने की कोशिश की i अंग्रेजो से तो हमे इन्साफ की उम्मीद नहीं थी लेकिन आज आज़ाद भारत में भी ये अन्याय क्यों ? आज भी इतनी कुर्बानियों के बाद भी ये जंगजू कौम “अहीर रेजिमेंट ” के लिए क्यों मोहताज़ है ? माँ भारती के सम्मान में हर युद्ध में, हमने अपने शीश अर्पित किये – 1948 बडगाम , 1962 रेजांगला, 1965 हाजी पीर , 1967 नाथू ला ,1971 बांग्लादेश , श्री लंका , 1999 टाइगर हिल -कारगिल , अक्षरधाम , संसद भवन – हर जगह यदुवंशी खून खूब बहा , लेकिन रेजिमेंट फिर भी न मिली i एक जंगजू कौम का इतना अपमान – क्या मुल्क आज़ाद है या आज भी फिरंगी राज है i
ये जॉब की नही मान की लड़ाई है यदुवंश के सम्मान की लड़ाई है।
जो एक यादव सरकार ही दे सकती है ।
अत: सब यदुवंशी मिल कर रणघोष करें –
वोट वो ही पायेगा , जो “अहीर रेजिमेंट” बनवायेगा i
यादव और अहीर अलग-अलग कुल हैं
ReplyDeleteयादव-प्राण-कार्ये च शक्राद अभीर-रक्शिणे।
गुरु-मातृ-द्विजानां च पुत्र- दात्रे नमो नमः।।
(Garga Samhita 6:10:16)
Translation: जिन्होंने यादवों की रक्षा की, जिन्होंने राजा इंद्र से अहीरों की भी रक्षा की और अपनी माता, गुरु और ब्राह्मण को उनके खोए हुए बेटों को वापस दिलाया, मैं आपको आदरणीय प्रणाम करता हूँ।
अन्ध्रा हूनाः किराताश् च पुलिन्दाः पुक्कशास् तथा
अभीरा यवनाः कङ्काः खशाद्याः पाप-योणयः
(Sanatakumara Sahmita - Sloka 39)
Translation : अंध्र, हुण, किरात, पुलिंद, पुक्कश, अहीर, यवन, कंक, खस और सभी अन्य पापयोनि से उत्पन्न होने वाले भी मंत्र जप के लिए योग्य हैं।
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे ।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥ (Ramcharitmanas 7:130)
Translation अहीर, यवन, किरात, खस, श्वपच (चाण्डाल) आदि जो अत्यंत पाप रूप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं, उन श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥
किरात- हूणान्ध्र- पुलिन्द-पुक्कश आभीर- कङ्क यवनाः खशादयाः।
येन्ये च पापा यद्-अपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः।।
(Srimad Bhagavatam 2:4:18)
Translation: किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, अहीर, कङ्क, यवन और खश तथा अन्य पापीजन भी जिनके आश्रयसे शुद्ध हो जाते हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ॥
ब्राह्मणादुप्रकन्यायामावृतो नाम जायते ।
आभीरोऽम्बष्ठकन्यायामायोगव्यां तु धिग्वणः ॥ १५ ॥
(Manusmriti 10:15)
Translation: उग्र कन्या (क्षत्रिय से शूद्रा में उत्पन्न कन्या को उग्रा कहते हैं) में ब्राह्मण से उत्पन्न बालक को आवृत, अम्बष्ठ (ब्राह्मण से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) कन्या में ब्राह्मण से उत्पन्न पुत्र अहीर और आयोगवी कन्या (शूद्र से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) से उत्पन्न पुत्र को धिग्वण कहते हैं।
अन्त्यजा अपि नो कर्म यत्कुर्वन्ति विगर्हितम् आभीरा ।
स्तच्च कुर्वति तत्किमेतत्त्वया कृतम् ॥ ३९ ॥
(Skanda Purana: Nagarkhand: Adhyaya 192 Sloka 39)
Translation: अन्यज जाति के लोग भी जो घृणित कर्म नहीं करते अहीर जाति के लोग वह कर्म करते हैं।
आभीरैर्दस्युभिः सार्धं संगोऽभूदग्निशर्मणः ।
आगच्छति पथा तेन यस्तं हंति स पापकृत् ॥ ७ ॥
(Skanda Puran: Khanda 5:Avanti Kshetra Mahatmyam : Adhyay 24: Sloka 7)
Translation : उस जंगल में अहीर जाति के कुछ लुटेरे रहते थे। उन्हीं के साथ अग्निशर्मण की संगति हो गयी। उसके बाद बन के मार्ग में आने वाले लोकों को वह पापी मारने लगा।
उग्रदर्शनकर्माणो बहवस्तत्र दस्यवः ।
आभीरप्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम ॥ ३३ ॥
तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पापकर्मभिः ।
अमोघः क्रियतां राम अयं तत्र शरोत्तमः ॥ ३४ ॥
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मनः ।
मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागरदर्शनात् ॥ ३५ ॥
(Valmiki Ramayan -Yudhkand: Sarg22: Shlok 33-35)
Translation : वहाँ अहीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं, जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सब-के-सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं ॥ ३३ ॥ उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं नहीं सह सकता। श्रीराम ! आप अपने इस उत्तम बाण को वहीं सफल कीजिये ॥ ३४ ॥ महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के दिखाये अनुसार उसी देश में श्रीरामचन्द्रजी ने वह अत्यन्त प्रज्वलित बाण छोड़ दिया ॥ ३५ ॥
शूद्राभीरगणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम्।
वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर्ये च पर्वतवासिनः।। १०।।
(Mahabharata -Sabhaparva:Adhyay 35:Shlok 10)
Translation : सरस्वती नदी के तट पर रहने वाले शूद्र अहीर गण थे। मत्यस्यगण के पास रहने वाले और पर्वतवासी इन सबको नकुल ने वश में कर लिया ।
यादव महिलाओं के साथ अहीरों ने किया बलात्कार
ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतसः
आभीरा मंत्रयामासः समेत्याशुभदर्शन का "
प्रेक्षतस्तवेव पार्थस्य वृषणयन्धकवरस्त्रीय
मुरादाय ते मल्लेछा समन्ताजज्नमेय् ।
(Mahabharata: Mausalparva: Adhyay 7 Shlok -47,63)
Translation: लोभ से उनकी विवेक शक्ति नष्ठ हो गयी, उन अशुभदर्शी पापाचारी अहीरो ने परस्पर मिलकर हमले की सलाह की। अर्जुन देखता ही रह गया, वह म्लेच्छ डाकू (अहीर) सब ओर से यदुवंशी - वृष्णिवंश और अन्धकवंश कि सुंदर स्त्रियों पर टूट पड़े।