वैदिक_आर्यं - चन्द्रवँशी पंचजन्य
सिर्फ आर्य - सूर्यवंशी / अग्निवंशी या ब्राह्मणों के बनाये क्षत्रिय ।
द्रविड़ियन - यक्ष , राक्षस या मूल निवासी
ये तीनो कौन है ?
आज कल राजनीती की कारण लोग इस मुद्दे पर राज नीति करते है तब आप समझ सकते हैं भारत का भविष्य कैसा होगा ।
इसके लिए नासमझ लोगों को बहकाया जा रहा है और वह मानसिक तौर पर ग्रसित होते जा रहे है इसके लिए यह सच बोलती पोस्ट आपको सच का चेहरा दिखाएगी ।
सबसे पहले हमारा भारत पहले सीमाओं में नही था कि लोग सीमाओं और देश के नाम से जाने जाएँ।
लोग काबिले और संस्कृति से जाने जाते थे ।
और Middle East से इनका माइग्रेशन था । वह लोग देवता और गौ और पसु को अपना सच्चा मित्र मानते थे जो एक बहुत बड़ा धन था । जब दुनिया में सिर्फ अनाज और दूध हो उस दुनिया की कल्पना करो की कोण सबसे अमीर या धनि होगा ।
वह होगा जिसके पास अन्न हो
या उसके पास जिसके पास चलता फिरता धन हो जिसे वह कहीं भी ले जा सके बड़ी आसानी से वह है पशु अर्थात गौ ।
Rigved में पंच जन्य या पांच क्षत्रिय कहे जाने वाले आर्यों का जिक्र है ।
जिनमे से यदु और पुरु आज के भारत के मगध में उनका निवास स्थान बताया गया है ।
महाभारत के बाद कुरु की और यदु के कुछ ही कुल आर्यवर्त में बचे।
आज वैदिक क्षत्रिय कहे जाने वाले सिर्फ यदु के वंसज ही बचे हैं ।
बाद के आर्य सूर्यवंशी जिनका इतिहास सतयुग में लगभग ख़त्म हो गया , था ब्राह्मणों ने नए क्षत्रिय अग्नि से पैदा किये और उन क्षत्रियों को अग्निवंशी क्षत्रिय कह गया ।
अब सवाल की उन्हें क्या जरुरत पड़ी की क्षत्रिय अग्नि से निकाले जाएँ क्या सच में पृथ्वी क्षत्रिय रहित थी ?
या बाहरी लोंगो को हिन्दू धर्म के अंदर लाके सिर्फ चंद्रवंशियों को ख़त्म करने की साजिश है ।
यह आज की लड़ाई नही है ऋग्वेद काल से लेकर आज तक लड़ी जा रही है।
सूर्यवंशी आर्य त्रिमूर्ति पूजते थे
पञ्च जन्य विष्णु को सर्वोच्च और द्रविड़ियन शिव को मानते थे
आज के आर्यन्स और अंग्रजो और मुसलमानों में कुछ भी फर्क नही फर्क है तो बस भाषा रहन सहन , धर्म का ।
इनका नाक नक्स एक जैसा होगा पूरी दुनिया में इनकी ही तादाद ज्यादा है ।
आज के आर्यन्स वैदिक आर्यों से कुंठित हैं तथा उनका पूरा इतिहास ख़त्म करने पर तुले हैं ।
और लगभग कर भी चुके हैं
कुछ वैदिक आर्य अर्थात वैदिक क्षत्रिय खुद को मूलवासी समझ रहे हैं क्योंकि उन्हें यह ज्ञात ही नही की वह असलियत में क्या हैं ।
असलियत यह है कि हम सबके साथ रह सकते हैं हमारे अंदर वैदिक आर्यों का पवित्र खून है ।
और हमारे इतने सालों से यहाँ रहते हुवे न हम द्रविड़ियन हैं न हम आज के आर्य हमारी संस्कृति अलग है हम त्रिमूर्ति को एक मानते हैं लेकिन विष्णु को सबसे ऊपर ।
आज के आर्य शिव को ज्यादा मानते हैं ।
अहीर और यादव वैदिक आर्य की श्रेणी में है जो न द्रविड़ियन है न ही आज के आर्य ।
आज के आर्यन ने वैदिक आर्यों को लगभग ख़त्म हिनकर दिया हैं उनके धर्म ग्रंथों और पुराणों को पूनः सम्पादित करके खुद की भी एक जगह बनाली है इनमे ।
हाँ यह सत्य है कि हमने कभी आज के आर्यं को अपने से ऊँचा कभी नही माना ।
लेकिन तब उन्होंने हमें आज के क्षत्रिय आर्यों के साथ मिलकर सबसे नीचे पायदान पर धकेलने की साजिश रची ।
आज ज्यादातर आज के आर्यन्स को क्षत्रिय मानती है और उनका इतिहास सिर्फ ब्राह्मणों के कारण ही है तब वह दूसरे पायदान पर इसलिये खुस हैं जबकि हो सकता है वह सूर्यवंश या चन्द्रवंश के ही हों पर उन्हें एक झूट दिया गया है जो ब्राह्मणों के द्वारा तब उनकी हिम्मत भी नही की वह आवाज उठायें ।
ब्राह्मणों ने अपने बनाये हुवे क्षत्रयों को दूसरा प्रयडाँ दिया हमें ये मंजूर नही था , क्योंकि हम सीधा देवों के पुत्र है तब भी ब्राह्मणों ने यदु और कुरु के कुलों को इनसे नीचे रख दिया ।
जबकि आज के आर्यों का पायदान 3सरे स्लैब पर आता है ।
अहीर / यादव एक वैदिक आर्यं ट्राइब है जो हमेशा आर्यवर्त में रही ।
आज के आर्यन्स हिंसक प्रविर्ती के हैं चाहे वह रोहिंग्या हो ये हुन्स या खिलजी या बाबर आदि ये सिर्फ खुद का राज चाहते हैं पर ये अपनों को भी मारने में हिचकते नही सत्ता के लिए।
यादव अहीर का मूल स्थान मिडिल ईस्ट से लेकर भारत के मिडिल में हैं ।
और जहाँ भी आज यदवंशी हैं वह इन्ही जगह से मैग्रटेड हैं ।
ये ही क्षत्रियों की वह Linage है जो ब्राह्मणों के द्वारा निहि अपितु इनसे पहले की है ।
यहाँ ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था खुद बनायी और उसमें इन्होंने खुद की जाति बना दी और सब को वर्ण कार्यों से निर्धारित कर दिया ।
हाँ हमारा स्वाभाव ऐसा है कि हम हिंसा नही चाहते लेकिन ताकत और पवित्र शब्द सिर्फ वैदिक क्षत्रियों नके लिए ही उपयोग होता है और वो हम हैं ।
यादव वैदिक आर्यं ट्राइब हैं । इनका यक्ष द्रविड़ियन से कुछ लेना देना नही ।
यक्ष राक्षस या मूलनिवासी वह हैं जो समुद्र के जीवन के रक्षा के लिए बनाये गए थे ब्रम्हा द्वारा , लेकिन कुछ को सत्ता का सुख भोगने की लालसा ने कई बार देवों से युद्ध हुवा है लेकिन सारे राक्षस एक जैसे निहि होते थे ,कोई कोई उसूलों का पक्का होता था ।
वैदिक क्षत्रियों का लगभग पतन हो गया लेकिन भारत में अभी भी अपने अस्तिव को सिर्फ एक कुल बचा है यदुकुल ।
जो ब्राह्मण के द्वारा नही बल्कि ब्रम्हा से सीधा आया है ब्राह्मण कभी हमें ऊपर निहि मानेगे और हम उन्हें कभी नही मानेगे।
असली सूर्यवंशी जहाँ भी होंगे वह भी कभी भी ब्राह्मण को अपने से ऊपर निहि मान सकते ।
वैदिक आर्यं की वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण 2 पायदान पर हैं
वैदिक वर्ण व्यवस्था
वैदिक आर्य (पञ्च जन्य / ब्रम्ह से उतपन्न)
।
ब्राह्मण ( जो ब्रम्ह को जान ले, भिखारी , विप्र )
।
क्षत्रिय (जोभी अस्त्र और क्षत्र धारण कर ले)
|
वैश्य ( जोभी व्यापार करता हो, देह से लेकर कोई भी वस्तु)
।
सूद्र ( जो लोग क्षत्र धारण या अस्त्र उठा निहि सकते वह श्रमिक )
।
अछूत ( ऐसे कार्य जो असुद्ध हैं मांस चमड़े या मदिरा पान करने वाला)
नोट:- गौ पालन और अन्न उपार्जन वैदिक आर्यं का व्यवसाय नही अपितु दिनचर्या थी उन्होंने गौ पालन देव पूजा कहा है और इसे व्यवसाय की श्रेणी से दूर रखा था
अर्थात हमे इन बातों से ज्ञान होता है कि न तो हम यक्ष हैं न राक्षस न ही ब्राह्मणों के बनाये हुवे क्षत्रिय जो उनके ही पैर चूमे ये वही उनके बनाये हुवे नकली क्षत्रिय करते हैं ।
यादव या अहीर चन्द्रवंश की साखा का बचा हुवा वैदिक आर्य क्षत्रिय है जो सबकी नजर में कांटे की तरह चुभ रहा है ।
ये आज के आर्य और मूलनिवासी यक्ष और राक्षस हमारे नही हैं
हमारे अपने वही हैं जो खुद को यादव मानते हैं खुद को वैदिक क्षत्रिय मानते हैं और खुद को सभी कुल से ऊँचा मानते हैं।
हम इज्जत सबकी करते हैं पर ऊँचा खुद से किसी को नही मानते क्योंकि ब्राह्मणों का स्टेटस हमसे नीचे है हम सबको इज्जत दे सकते हैं पर ऊँचा निहि मानेगे इसके विपरीत आज के क्षत्रिय इनके पैर पकड़ते हैं क्योंकि इनका सारा इतिहास ब्राह्मणों का बनाया है और हमारा इतिहास खुद ब्रम्ह की वजह से है ।
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आशा करूँगा कोई यादव अब खुद को मूल निवासी या आज का आर्य नही समझेगा और सच जानेगा ।
यदुवंश बचालो अभी भी 26 % हैं इंडिया में
जय यदुवंश जय द्वारिकाधीश
सिर्फ आर्य - सूर्यवंशी / अग्निवंशी या ब्राह्मणों के बनाये क्षत्रिय ।
द्रविड़ियन - यक्ष , राक्षस या मूल निवासी
ये तीनो कौन है ?
आज कल राजनीती की कारण लोग इस मुद्दे पर राज नीति करते है तब आप समझ सकते हैं भारत का भविष्य कैसा होगा ।
इसके लिए नासमझ लोगों को बहकाया जा रहा है और वह मानसिक तौर पर ग्रसित होते जा रहे है इसके लिए यह सच बोलती पोस्ट आपको सच का चेहरा दिखाएगी ।
सबसे पहले हमारा भारत पहले सीमाओं में नही था कि लोग सीमाओं और देश के नाम से जाने जाएँ।
लोग काबिले और संस्कृति से जाने जाते थे ।
और Middle East से इनका माइग्रेशन था । वह लोग देवता और गौ और पसु को अपना सच्चा मित्र मानते थे जो एक बहुत बड़ा धन था । जब दुनिया में सिर्फ अनाज और दूध हो उस दुनिया की कल्पना करो की कोण सबसे अमीर या धनि होगा ।
वह होगा जिसके पास अन्न हो
या उसके पास जिसके पास चलता फिरता धन हो जिसे वह कहीं भी ले जा सके बड़ी आसानी से वह है पशु अर्थात गौ ।
Rigved में पंच जन्य या पांच क्षत्रिय कहे जाने वाले आर्यों का जिक्र है ।
जिनमे से यदु और पुरु आज के भारत के मगध में उनका निवास स्थान बताया गया है ।
महाभारत के बाद कुरु की और यदु के कुछ ही कुल आर्यवर्त में बचे।
आज वैदिक क्षत्रिय कहे जाने वाले सिर्फ यदु के वंसज ही बचे हैं ।
बाद के आर्य सूर्यवंशी जिनका इतिहास सतयुग में लगभग ख़त्म हो गया , था ब्राह्मणों ने नए क्षत्रिय अग्नि से पैदा किये और उन क्षत्रियों को अग्निवंशी क्षत्रिय कह गया ।
अब सवाल की उन्हें क्या जरुरत पड़ी की क्षत्रिय अग्नि से निकाले जाएँ क्या सच में पृथ्वी क्षत्रिय रहित थी ?
या बाहरी लोंगो को हिन्दू धर्म के अंदर लाके सिर्फ चंद्रवंशियों को ख़त्म करने की साजिश है ।
यह आज की लड़ाई नही है ऋग्वेद काल से लेकर आज तक लड़ी जा रही है।
सूर्यवंशी आर्य त्रिमूर्ति पूजते थे
पञ्च जन्य विष्णु को सर्वोच्च और द्रविड़ियन शिव को मानते थे
आज के आर्यन्स और अंग्रजो और मुसलमानों में कुछ भी फर्क नही फर्क है तो बस भाषा रहन सहन , धर्म का ।
इनका नाक नक्स एक जैसा होगा पूरी दुनिया में इनकी ही तादाद ज्यादा है ।
आज के आर्यन्स वैदिक आर्यों से कुंठित हैं तथा उनका पूरा इतिहास ख़त्म करने पर तुले हैं ।
और लगभग कर भी चुके हैं
कुछ वैदिक आर्य अर्थात वैदिक क्षत्रिय खुद को मूलवासी समझ रहे हैं क्योंकि उन्हें यह ज्ञात ही नही की वह असलियत में क्या हैं ।
असलियत यह है कि हम सबके साथ रह सकते हैं हमारे अंदर वैदिक आर्यों का पवित्र खून है ।
और हमारे इतने सालों से यहाँ रहते हुवे न हम द्रविड़ियन हैं न हम आज के आर्य हमारी संस्कृति अलग है हम त्रिमूर्ति को एक मानते हैं लेकिन विष्णु को सबसे ऊपर ।
आज के आर्य शिव को ज्यादा मानते हैं ।
अहीर और यादव वैदिक आर्य की श्रेणी में है जो न द्रविड़ियन है न ही आज के आर्य ।
आज के आर्यन ने वैदिक आर्यों को लगभग ख़त्म हिनकर दिया हैं उनके धर्म ग्रंथों और पुराणों को पूनः सम्पादित करके खुद की भी एक जगह बनाली है इनमे ।
हाँ यह सत्य है कि हमने कभी आज के आर्यं को अपने से ऊँचा कभी नही माना ।
लेकिन तब उन्होंने हमें आज के क्षत्रिय आर्यों के साथ मिलकर सबसे नीचे पायदान पर धकेलने की साजिश रची ।
आज ज्यादातर आज के आर्यन्स को क्षत्रिय मानती है और उनका इतिहास सिर्फ ब्राह्मणों के कारण ही है तब वह दूसरे पायदान पर इसलिये खुस हैं जबकि हो सकता है वह सूर्यवंश या चन्द्रवंश के ही हों पर उन्हें एक झूट दिया गया है जो ब्राह्मणों के द्वारा तब उनकी हिम्मत भी नही की वह आवाज उठायें ।
ब्राह्मणों ने अपने बनाये हुवे क्षत्रयों को दूसरा प्रयडाँ दिया हमें ये मंजूर नही था , क्योंकि हम सीधा देवों के पुत्र है तब भी ब्राह्मणों ने यदु और कुरु के कुलों को इनसे नीचे रख दिया ।
जबकि आज के आर्यों का पायदान 3सरे स्लैब पर आता है ।
अहीर / यादव एक वैदिक आर्यं ट्राइब है जो हमेशा आर्यवर्त में रही ।
आज के आर्यन्स हिंसक प्रविर्ती के हैं चाहे वह रोहिंग्या हो ये हुन्स या खिलजी या बाबर आदि ये सिर्फ खुद का राज चाहते हैं पर ये अपनों को भी मारने में हिचकते नही सत्ता के लिए।
यादव अहीर का मूल स्थान मिडिल ईस्ट से लेकर भारत के मिडिल में हैं ।
और जहाँ भी आज यदवंशी हैं वह इन्ही जगह से मैग्रटेड हैं ।
ये ही क्षत्रियों की वह Linage है जो ब्राह्मणों के द्वारा निहि अपितु इनसे पहले की है ।
यहाँ ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था खुद बनायी और उसमें इन्होंने खुद की जाति बना दी और सब को वर्ण कार्यों से निर्धारित कर दिया ।
हाँ हमारा स्वाभाव ऐसा है कि हम हिंसा नही चाहते लेकिन ताकत और पवित्र शब्द सिर्फ वैदिक क्षत्रियों नके लिए ही उपयोग होता है और वो हम हैं ।
यादव वैदिक आर्यं ट्राइब हैं । इनका यक्ष द्रविड़ियन से कुछ लेना देना नही ।
यक्ष राक्षस या मूलनिवासी वह हैं जो समुद्र के जीवन के रक्षा के लिए बनाये गए थे ब्रम्हा द्वारा , लेकिन कुछ को सत्ता का सुख भोगने की लालसा ने कई बार देवों से युद्ध हुवा है लेकिन सारे राक्षस एक जैसे निहि होते थे ,कोई कोई उसूलों का पक्का होता था ।
वैदिक क्षत्रियों का लगभग पतन हो गया लेकिन भारत में अभी भी अपने अस्तिव को सिर्फ एक कुल बचा है यदुकुल ।
जो ब्राह्मण के द्वारा नही बल्कि ब्रम्हा से सीधा आया है ब्राह्मण कभी हमें ऊपर निहि मानेगे और हम उन्हें कभी नही मानेगे।
असली सूर्यवंशी जहाँ भी होंगे वह भी कभी भी ब्राह्मण को अपने से ऊपर निहि मान सकते ।
वैदिक आर्यं की वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण 2 पायदान पर हैं
वैदिक वर्ण व्यवस्था
वैदिक आर्य (पञ्च जन्य / ब्रम्ह से उतपन्न)
।
ब्राह्मण ( जो ब्रम्ह को जान ले, भिखारी , विप्र )
।
क्षत्रिय (जोभी अस्त्र और क्षत्र धारण कर ले)
|
वैश्य ( जोभी व्यापार करता हो, देह से लेकर कोई भी वस्तु)
।
सूद्र ( जो लोग क्षत्र धारण या अस्त्र उठा निहि सकते वह श्रमिक )
।
अछूत ( ऐसे कार्य जो असुद्ध हैं मांस चमड़े या मदिरा पान करने वाला)
नोट:- गौ पालन और अन्न उपार्जन वैदिक आर्यं का व्यवसाय नही अपितु दिनचर्या थी उन्होंने गौ पालन देव पूजा कहा है और इसे व्यवसाय की श्रेणी से दूर रखा था
अर्थात हमे इन बातों से ज्ञान होता है कि न तो हम यक्ष हैं न राक्षस न ही ब्राह्मणों के बनाये हुवे क्षत्रिय जो उनके ही पैर चूमे ये वही उनके बनाये हुवे नकली क्षत्रिय करते हैं ।
यादव या अहीर चन्द्रवंश की साखा का बचा हुवा वैदिक आर्य क्षत्रिय है जो सबकी नजर में कांटे की तरह चुभ रहा है ।
ये आज के आर्य और मूलनिवासी यक्ष और राक्षस हमारे नही हैं
हमारे अपने वही हैं जो खुद को यादव मानते हैं खुद को वैदिक क्षत्रिय मानते हैं और खुद को सभी कुल से ऊँचा मानते हैं।
हम इज्जत सबकी करते हैं पर ऊँचा खुद से किसी को नही मानते क्योंकि ब्राह्मणों का स्टेटस हमसे नीचे है हम सबको इज्जत दे सकते हैं पर ऊँचा निहि मानेगे इसके विपरीत आज के क्षत्रिय इनके पैर पकड़ते हैं क्योंकि इनका सारा इतिहास ब्राह्मणों का बनाया है और हमारा इतिहास खुद ब्रम्ह की वजह से है ।
जानकारी ज्यादा से ज्यादा शेयर करदें
आशा करूँगा कोई यादव अब खुद को मूल निवासी या आज का आर्य नही समझेगा और सच जानेगा ।
यदुवंश बचालो अभी भी 26 % हैं इंडिया में
जय यदुवंश जय द्वारिकाधीश
सबसे पहले आंदोलन करके खुद को OBC और आरक्षित की श्रेणी से निकलवाओ .. OBC और आरक्षण ही तुम्हे शूद्र बहुजन 85 साबित करता है ... ऐसा मैं नहीं कह रहा बहुत से अहिर स्वंय खुद को बहुजन 85, मूलनिवासी आदि कहतें है
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