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Showing posts from November, 2017

The First Man Who Fly Flag At India Gate

++++आज़ाद भारत में India gate पर सबसे पहले तिरंगा फ़हराने वाले (वाइसराय लार्ड माउंटबेटन के ADC) ब्रिगेडियर हुकुम सिंह यादव++++ ************************************************************************ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के एक यदुवंशी अहीर ज़मींदार परिवार में जन्में हुकुम सिंह यादव उर्फ़ चौधरी हुकुम सिंह यादव भारत के अंतिम अँगरेज़ वाइसराय लार्ड माउंटबेटन के ADC थे और सबसे पहले तिरंगा भी उन ने ही फ़हराया था आज़ाद भारत में i 1935 में हुकुम सिंह यादव पड़ाई पूरी करने के लिए मसूरी के जाने माने स्कूल Woodstock School आ गए। इसके बाद हुकुम सिंह यादव Indian Artillery के Royal Regiment mein posted हुए। अपने मेहनत, ईमानदारी के कारण चौधरी हुकुम सिंह यादव मात्र 20 वर्ष की आयु में Captain की रैंक हासिल करली। और 1942 में पहले भारतीय बने जिन्हें as an instructor appoint किया गया था Gunnery में। आखिरकार वो दिन आगया। 15 अगस्त का वो दिन था और भारत गुलामी की ज़ंजीरें तोड़ जश्न-ए-आज़ादी मना रहा था। India gate पर लाखों की तादाद में पहूँचे आज़ादी का उत्सव मनाने को। इसी बीच

Yaduvanshi Raja Poras History / यदुवंशी राजा पोरस इतिहास

पोरस आज प्रारम्भ हो रहा है एक महान गाथा! यदुवंश के इस महान गाथा को देखना ना भूलें  शासन काल :- 340 – 317 ई० पू० शासन क्षेत्र – आधुनिक पंजाब एवं पाकिस्तान में झेलम नदी से चिनाब नदी तक | उतराधिकारी :- मलयकेतु (पोरस के भाई का पोता ) वंश – शूरसेनी (यदुवंशी)   सिन्धु नरेश पोरस का शासन कल 340 ई० पू० से 317 ई० पू० तक माना जाता है | इनका शासन क्षेत्र आधुनिक पंजाब में झेलम नदी और चिनाव नदी (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) के बीच अवस्थित था | उपनिवेश ब्यास नदी (ह्यीपसिस) तक फैला हुआ था | उसकी राजधानी आज के वर्तमान शहर लाहौर के पास थी |  महाराजा पोरस सिंध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। उनकी कद – काठी विशाल थी | माना जाता है की उनकी लम्बाई लगभग 7.5 फीट थी | प्रसिद्ध इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद एवं अन्य का मानना है कि पोरस शूरसेनी था| प्रसिद्ध यात्री मेगास्थनीज का भी मत था कि पोरस मथुरा के शूरसेन वंश का था, जो अपने को यदुवंशी श्री कृष्ण का वंशज मानता था| मेगास्थनीज के अनुसार उनके राज ध्वज में श्री कृष्ण विराजमान रहते थे तथा वहां के निवासी श्री कृष्ण की पूजा कि

Yadav Vedik Kshatriya Hain / यादव वैदिक क्षत्रिय है।

यादव बंधुओ आजकल कुछ जातियाँ खुद को #क्षत्रिय😝 बताकर हमे #क्षत्रिय मानने से इंकार करते है👊👊ये बाते उन लोगो को बताने के लिए काफी है की #यदुवंश ही #क्षत्रिय_वंश का प्रधान वंश है और यादव जाती #वैदिक_क्षत्रिय है । 1जब लोगो को तलवार 🔪के बारे में सुना भी नही था उस समय हमारी #5लाख सेनिकों की #नारायणी_सेना थी । 2 जिस भगवान के सामने ये दुनिया सुबह सुबह उठकर सर झुकाती है #श्रीकृष्ण वो भी यादव एक #यादव ही थे । 3 #महाभारत का युद्ध भी #यादवो के बीच हुआ था । 4 King Porus who defeated Alexander The Great भी यादव था 5 #भारत पर राज़ करने वाले महान राजा #अशोक भी यादव ही थे । 6 पुरे भारत को अपना राज्य बनाने वाले #चंद्रगुप्त_मोर्य भी यादव ही था । 7 जैसलमेर को स्थापित करने वाला राजा #रावल_जैसल भी यादव थे । 8 देश का पहला स्वतंत्रता सेनानी Veeran Azhagu Muthu Kone भी यादव थे । 9 सिखों के महान राजा #Maharaja_Ranjit Singh भी यादव ही थे । 10-1857 की क्रांति के महानायक Veera Pandya Kattabomman, Rao #TulaRam singh, Pran #Sukh Yadav, Rao #Gopaldev singh भी #यादव ही थे । 11-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

Gwalvanshi Yadav / AHIR / ग्वालवंशी यादव / अहीर

ग्वालवंशी यादव / अहीर यदुवंश की दो साखा जो पृथक नही हैं बस नाम पृथक है ग्वालवंशी और नन्द्वंशी | ग्वालवंश / गोपवंश साखा अति पवित्र साखा है महाभारत के अनुसार यह यदुवंशी क्षत्रिय राजा गौर के  वंसज हैं | पर  यह नन्द और वशुदेव के चचेरे भाईयों की संतान भी माने ज़ाते हैँ जो वृष्णिवंश से थे | गोप और ग्वाल को पवित्र कहने के पीछे भी एक कारण है यह गोपियां ऋषियो का रुप हैं जो सत्यूग से नारायण की अराधना कर रहे थे और ग्वाल देवता थे | यही से पृथक साखा ग्वालवंश बनी | यह गोप / या ग्वाल शब्द गौ से है गौ वाला - ग्वाल और गोपाल - गोप जो आर्य का प्रतीक है और गौ धन इन्ही की देन् है इस भारत को | जो की अब हिन्दू होने का प्रतीक है | इन्हे कर्म के आधार पर वैश्य वर्ण में कुछ मूर्खो ने रखा या माना है जबकी वर्ण व्यास्था जन्म से है उदाहरण - परशुराम् जी ब्रहमान थे जन्म से कर्म क्षत्रिय का परंतु क्षत्रिय नहीं | उसी तरह गौ पालन देव पूजा है नकि गौ व्यापार | अत: उसवक्त व्यापार जैसा सब्द भी नहीं था सब वस्तु विनियम् प्रणाली थी तो अस आधार पर वह वैश्य वर्ण के हवे ही नहीं | यह मूल से क्षत्रिय

Gwalvansh ke Gotra / ग्वालवंश साखा के गोत्र

ग्वालवंश साखा के गोत्र 1.कोकन्दे 2. हिन्नदार 3.सुराह 4.रियार 5.सतोगिवा 6.रराह 7.रौतेले 8.मोरिया 9.निगोते 10.बानियो 11.पड़रिया 12.मसानिया 13.रायठौर 14.फुलसुंगा 15.मोहनियां 16.चंदेल 17.हांस 18.कुमिया 19.सागर 20.गुजैले 21.सफा 22.अहीर 23.कछवाए 24.थम्मार 25.दुबेले 26.पचौरी 27.बमनियाँ 28.गयेली 29.रेकवार 30.गौंगरे 31.लखोनिया

Royal Ahiraani Dulayaa Yadav / राजवंश अहीरानी दुलया यादव

उत्तर प्रदेश की शान रेबाई स्टेट की महारानी ठकुरानी लरई दुलया यादव :- ______________________________________ लड़कियाँ भी राज-पाठ संभाल सकती हैं, लड़कियाँ भी युद्ध लड़ सकती हैं। आज बात करेंगे उस महान विरांगना की जिसने औरत होते हुए भी शमशीर हाथों में ले अपने परिवार और रियासत को एक सिंहनी की भांति बचाए रखा। उत्तर प्रदेश की जब बड़ी विरांगनाओं का नाम आता है तो उनमें से एक हैं बुंदेलखंड की यदुवंशी अहीरानी ठकुरानी लरई दुलया यादव। रेबाई रियासत की स्थापना 1802 में 'दाउ' गोत्र के यदुवंशी अहीर राजा ठाकुर लक्ष्मण सिंह यादव ने की थी। ठाकुर लक्ष्मण सिंह यादव बुंदेलखंड के बड़े ज़मींदार राजपरिवार से थे। 1802 में बांदा के नवाब को हरा महाराजासा ठाकुर लक्ष्मण सिंह ने रेबाई स्टेट की स्थापना करी थी। हालांकि 1808 में खराब स्वास्थ्य के कारण महाराजा सा का स्वर्गवास हो गया। 1808 में राजपरिवार के उत्तराधिकारी कुँवर जगत सिंह यदुवंशी ने राजगद्दी संभाली और 31 वर्षों तक राज किया। 1839 में रेबाई स्टेट के महाराजा सा कुँवर जगत सिंह यदुवंशी की मृत्यु के बाद रेबाई रिया

Rao Gopal Dev Singh AHIR / राव_गोपालदेव_जी

राव_गोपालदेव_जी_ने_ठुकरा_दिया_था_अंग्रेजों_का_माफीनामा ! #16_नवम्बर_क्रान्ति_दिवस_पर_विशेष :- अहीरवाल वैदिक काल से भारतीय सभ्यता, संस्कृति व इतिहास की महत्वपूर्ण धरा रही है। यहां तक कि विभिन्न अवसरों पर कवियों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को ‘वीर जननी धरा अहीरवाल’ कहकर संबोधित किया है! इस धरा ने ऐसे वीरों और राष्ट्रभक्तों को जन्म दिया है, जिनकी तलवारों की चमक ने दुश्मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है! इनमें भारत माँ के चिराग राव गोपालदेव जी का जन्म सम्मत 1886 आसोज मास, शुदी पक्ष तिथि अष्ठमी (6 अक्टूबर 1829ई०)में रेवाड़ी के राजा राव नन्दराम जी के राजघराने में हुआ इतिहास का बारिकी से अध्ययन करने पर असल चीज सामने आ जाती है! पुराने जमाने में रेवाड़ी रियासत को उत्तरी भारत में एकमात्र मजबूत और सशक्त  हिंदू रियासत होने का गौरव प्राप्त था! इस शक्तिशाली रजवाड़े के कारण ही इस क्षेत्र के यादवों का पूरे देश में एक विशेष मान-सम्मान रहा है! *30 दिसम्बर सन 1803 ई० का दिन रेवाड़ी रियासत का दिन रेवाड़ी के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण दिवस रहा है! इस दिन दौलत राव सिंधिया ने अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि

Brahmavavart Purana Rules / ब्रह्मवैवर्तपुराण नियम

Brahma Vaivarta Purana in Hindi   : अच्छे और सुखी जीवन के लिए शास्त्रों के अनुसार कई ऐसे नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है। यहां हम आपको ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताए गए कुछ ऐसे नियम बता रहे है जिसका पालन स्त्री और पुरुषों दोनों को करना चाहिए। ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताए गए नियम – 1. इन तिथियों पर ध्यान रखें ये बातें हिन्दी पंचांग के अनुसार किसी भी माह की अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि पर स्त्री संग, तेल मालिश और मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए। 2. इन चीजों को जमीन पर न रखें दीपक, शिवलिंग, शालग्राम (शालिग्राम), मणि, देवी-देवताओं की मूर्तियां, यज्ञोपवीत, सोना और शंख को कभी भी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इन्हें नीचे रखने से पहले कोई कपड़ा बिछाएं या किसी ऊंचे स्थान पर रखें। 3. दिन के समय न करें समागम (सेक्स) दिन के समय और सुबह-शाम पूजन के समय स्त्री और पुरुष को समागम (sex) नहीं करना चाहिए। जो लोग यह काम करते हैं, उन्हें महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है। कई प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से स्त्री और पुरुष, दोनों को आंख और

Gopal (Gwal) Dynasty Of Nepal / गोपाल (ग्वालवंश) राजवन्श रियासत

Gopal (Gwalwanshi) Dynasty, Nepal ------------------------------------------------ नेपाल के " गोपाल" राजवंश का इतिहास महाभारत काल से शुरू होता है। (यहाँ गोपाल का अर्थ  गौ+पाल/ गौ+वाले से बना है  ग्वाल राजवंश ) महाभारत काल में द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण ने नेपाल के लोगों को वहाँ के दुष्ट असुर दानासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए नारायणी सेना के संग नेपाल पर चढाई करी। दुष्ट दानासुर की सेना को परास्त कर भगवान कृष्ण ने नेपाल में यदुवंशियों का राज्य स्थापित किया। **** इतिहासकारों के अनुसार "नेपाल" शब्द का अर्थ है  गौ+रक्षक। Historians का मत है कि- जब आर्य यदुवंशी अभीरों ने भगवान कृष्ण के नेतृत्व में नेपाल को जीत कर यहाँ शासन स्थापित किया संभवतः तभी इस देश का नाम "नेपाल" पड़ गया होगा। ****** नेपाल पे यदुवंशी अभीरों ने लगभग 1500 वर्षों तक अपना साम्राज्य स्थापित रखा एवं "महाराजा" और "गुप्त" की पदवी भी धारण करी। इतिहासकारों का ये भी मत है कि भारत के प्रसिद्ध "Gupt Empire" के शासक मूलतः नेपाल के गोपाल राजवंश

सनातन वैदिक धर्म और अन्य धर्म का उदगम् / Sanatan Dharm And Other Religion

इस जगह आपको भ्रम नहीं सत्य मिलेगा सत्य के शिवाय और कुछ नहीं | जो भी जानकारी दी जाएगी वह प्रमाणित और वेदों के आधार पर होगी | यहाँ यह बात समझ लेना बहुत आवश्य है कि वेद में ऋग्वेद और पुराणो में  चौदह पुराण में सिर्फ यदुवंश के का ही गौरव है उसका कारण है यदु का पृथक होना और फिर इस वंश में परमेश्वर का जन्म | इसका अर्थ है की जब गीता उपदेष तब सिर्फ एकेश्वर की  ही नीव रखी और इस बात को कृष्ण_गीता में साबित किया गया | सनातन धर्म सबसे पुराना है इसिलिये इसमें अनेक लोगो ने ऐसे ऐसे कार्य किये जो एक दिव्य शक्ती ही कर सकती है अर्थात जब यह श्रिष्टी का आरम्भ हुवा तब तो इसमें अनेक ईश्वर के अंश( देवी देवता) हुवे परंतु जब कल्युग के प्रारम्भ में कृष्ण भगवान अर्थात् धर्म की पुनहस्थापना के लिए उन्होंने गीता उपदेश दिया की ईश्वर मैं हूँ और मैं ही हूँ  सर्वत्र (देव देवी) और मैं एक हूँ और धर्म की स्थापना के लिये जब जब पाप को खत्म और धर्म की स्थापना करनी होगी मैं मनुष्य रुप में जन्म लूँगा अर्थात कल्यूग के अंत में और वह अभी 6000 वर्ष बाद होगा तो किसी को यह  ना समझे की भगवान हैं कोई भी | कृष्ण के देहत्याग के

Yadu Or Yaduvansh / यदु और यदुवंश

जय  श्री  कृष्णा महराजा यदु एक  राजा  थे। वे  यदुकुल  के प्रथम सदस्य माने जाते है। उनके वंशज जो कि  यादव  के नाम से जाने जाते हैं,  भारत  एवं निकटवर्ती देशो मे काफ़ी संख्या मे पाये जाते हैं। उनके वंशजो मे सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं .महराज यदु यायाती के पुत्र थे अत्रि ने ब्रह्मा पुत्र कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। अनुसूया की माता का नाम देवहूति था। अत्रि को अनुसूया से एक पुत्र जन्मा जिसका नाम दत्तात्रेय था। अत्रि-दंपति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा, महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में आविर्भूत हुए। इनके ब्रह्मावादिनी नाम की कन्या भी थी। अत्रि पुत्र चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा से विवाह किया जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा खुद को चंद्रवंशी कहते थे। चूंकि चंद्र अत्रि ऋषि की संतान थे इसलिए आत्रेय भी चंद्रवंशी ही हुए। ब्राह्मणों में एक उपनाम होता है आत्रेय अर्थात अत्रि स