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सनातन वैदिक धर्म और अन्य धर्म का उदगम् / Sanatan Dharm And Other Religion


इस जगह आपको भ्रम नहीं सत्य मिलेगा सत्य के शिवाय और कुछ नहीं |
जो भी जानकारी दी जाएगी वह प्रमाणित और वेदों के आधार पर होगी |
यहाँ यह बात समझ लेना बहुत आवश्य है कि वेद में ऋग्वेद और पुराणो में  चौदह पुराण में सिर्फ यदुवंश के का ही गौरव है उसका कारण है यदु का पृथक होना और फिर इस वंश में परमेश्वर का जन्म |
इसका अर्थ है की जब गीता उपदेष तब सिर्फ एकेश्वर की  ही नीव रखी और इस बात को कृष्ण_गीता में साबित किया गया |
सनातन धर्म सबसे पुराना है इसिलिये इसमें अनेक लोगो ने ऐसे ऐसे कार्य किये जो एक दिव्य शक्ती ही कर सकती है अर्थात जब यह श्रिष्टी का आरम्भ हुवा तब तो इसमें अनेक ईश्वर के अंश( देवी देवता) हुवे परंतु जब कल्युग के प्रारम्भ में कृष्ण भगवान अर्थात् धर्म की पुनहस्थापना के लिए उन्होंने गीता उपदेश दिया की ईश्वर मैं हूँ और मैं ही हूँ  सर्वत्र (देव देवी) और मैं एक हूँ और धर्म की स्थापना के लिये जब जब पाप को खत्म और धर्म की स्थापना करनी होगी मैं मनुष्य रुप में जन्म लूँगा अर्थात कल्यूग के अंत में और वह अभी 6000 वर्ष बाद होगा तो किसी को यह  ना समझे की भगवान हैं कोई भी |
कृष्ण के देहत्याग के 34 वर्ष बाद इस गीता का सार ज़िसको जैसा समझ आया उसने नए धर्म बना लिए अर्थात गीता का सार उसवक्त आज के मुकाबले इतना सरल नहीं था |
आज सनातन धर्म के अलावां जितने भी धर्म हैं वह 3500 से ज्यादा के नहीं हैं |
अर्थात कृष्ण को जो गांधारी से श्राप मिला था उसका ही कारण था की य़दुवंशी खुद की जातियों में लड़ने लगे और यही लड़ाई उनके माइग्रेशन का कारण बनी और वो मध्य एशिया को चले गए और गीता उपदेश के आधार पर ही नए धर्म की नीव रखी |
यहाँ यह बात उल्लेखनीय है की  गीता का आधार से तात्पर्य ज़िसको उसका जो धर्म या कर्म समझ आया उसी को उन्होंने धर्म माना |
यह ही य़दुवंश का श्राप है जो धर्म बदलते ही उनमे अस्थिरता आ गयी |
यह 100 % सच है की गीता उपदेश के  बाद अर्थात 1000 वर्ष बाद नए धर्म की नीव रखी गयी इसीलिए सारे धर्म ग्रंथ एक तरह से गीता पर आधारित है और गीता में सिर्फ एकेश्वर अर्थात कृष्ण को अराध्य मान ने को कहा और इसीलिए एकेश्वर धर्म - यहुदी धर्म और इसी धर्म से इस्लाम और क्रिसचिन गीता से ली गयी हैं अर्थात कृष्ण गीता का अर्थ यही था की मैं एक हूँ |
इसका अर्थ है की गीता का सार लोगों ने अपनी अपनी रहन सहन के हिसाब से और जो अर्थ उन्हे समझ आया उसके हिसाब से चलने लगे और मूर्ती पूजा  का विखण्डं कर सिर्फ एकेश्वर को अपना सबकुछ मानने लगे |
और भारत में दुसरे देवी देवता के  प्रभाव से लोग भली भांति परचित थे तब उन्हे कृष्ण पर पूर्णविश्वास था की वह ही सब कुछ हैं पर यहाँ मूर्तीपूजा सदियों से हो रही थी तो उनकी भी मूर्ती बनाकर उन्हे पूजने लगे परंतु सत्य  है की ज़िन्होने धर्म का ठेका लिया था उन्होंने सबको यह नहीं बताया की सनातन वेदिक धर्म का सार है गीता और गीता  ही धर्म ग्रंथ है पर इससे धर्म के ठेकेदार के घर ना चलते अगर लोग गीता में यह जान जाते की ईश्वर सिर्फ एक है और उसको अलग-अलग तरह से नहीं सिर्फ अच्छे कर्मो और अच्छे आचरन से पाया जा सकता है |
आज इतने सारे धर्म सिर्फ इन्ही पाखण्डियो के कारण हैं ज़िन्होने धर्म की गलत वाख्या की |
अगर सनातन वेदिक धर्म में सिर्फ गीता ही ऐसा ग्रंथ है जो ईश्वर ने खुद बताया है की मैं एक हूँ |
अर्थात यह बहोत पहले धर्म के ठेकेदार द्वारा यह बता देना ऊचित होता की श्यंभगवान ने गीता कही और गीता ही पवित्र है और यह ही अब सबका धर्म होना चाएये | परंतु सबके अपने लोभ आ गए और आज यही कारण है नए धर्म बनने का |
क्योंकी
कृष्ण ही सत्य है कृष्ण ही परमेश्वर है कृष्ण ही सबकुछ है
और  पूरी दुनिया उनके आवतार या उनके रुप को नहीं सिर्फ उन्हे पूजे अपने मन मंदिर में और इसके लिए गुरु की नहीं सिर्फ कृष्ण प्रेम की आवश्यक्ता है

जय  श्री कृष्णा 

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