Rashboots ➡️ Rashpoots ➡️ Rajpoot
Rashboots ➡️ रासपूत ➡️ Rajpoot कौन हैं ?
वर्तमान में ज्यादातर सभी लोग जानते हैं कि एक समाज खुद को पुराण व मनुस्मिर्ति से जोड़कर खुद को क्षत्रिय का स्टेट्स देने के लिए कुछ ज्यादा ही अमादा या जो इंडिया के पुराने राजवंश हैं उनसे खुद को जोड़ने और उन सब पर एकमेव अधिकार के लिए यह प्रयास 16विं सदी से जारी है ।
इस सदी से पूर्व यहाँ राजवंश तो थे लेकिन बहुत बड़े नही भले ही वह इतिहासों में कितनी बड़ी सल्तनत के मालिक दिखाए लेकिन सच यह है कि ये बड़ा भूभाग अलग अलग जागीरदारों और जातियों का अलग अलग जगह पर प्रभाव रहता था या यु कहें कि ये उन जातियों का अपना एक देश होता था पूरे भारत पर 7विं सदी तक तो विशुद्ध रूप से आभीर कबीलों और कबीलाई संस्कृति का ही चलन था ।
इस 7विं सदी के बाद भी यहाँ राज तो रहा है इस संस्कृति का लेकिन सीमा बढ़ाने या देश को और ज्यादा समृद्ध बनाने के लालच ने इन कबिलाई लोगों में एक दूसरे से ही युद्ध शुरू हो गया और यही वक्त था बाहरी लोंगों का फायदा उठाने का ।
इतिहासकार यह मानते हैं कि जो बाहरी लोग यहाँ से व्यापार करते थे वह यहाँ की समृद्धि सुख शान्ति और दुनिया से अलग इस बड़े भूभाग पर लड़ाइयां क्यों नही होती और यही रहा तब ये देश सबसे समृद्ध देश बन जाएगा और वह पिछड़ जाएंगे ।
अतः यह देश की बर्बादी का कारण बड़े व्यापारी रहे बड़े व्यापारी बाहर वालों ने यहाँ के व्यापारियों का तो पहले फायदा उठाया फिर कुछ अपने लोग यहाँ बैठाने के लिए उन्होंने बड़े बड़े चक्रव्यूह रचे और बाहरी लोगों में यह बात फ़ैल गयी की इंडिया एक सुख समृद्ध सम्पन्न द्वीप है , जिसे लूटने और राज करने की लालसा सभी बाहरी देश के बड़े व्यापारियों को लगी यहाँ के मिनरल और यहाँ की ज़मीन का दोहन करने के लिए बहुत बाहरी लोगों ने यहाँ सामाजिक ढांचे को तोड़ने के लिए जम्बूद्वीप (थाईलैंड ,कम्बोडिया ,वियतनाम ,इंडोनेशिया) जैसे वैश्यालय देशों में अंग्रेजों ने आसानी से जड़े जमाली और वहां का पूरा सामाजिक तानाबाना यहाँ लाने के लिए उन्होंने वहाँ की लड़कियों से बच्चे पैदा किये और उन्हें एक डिक्सनरी की तरह उपयोग किया ।
वहां की वर्ण व्यस्वथा से लेकर वहां के पूर्वज या तथाकथित देवी देवता और मूर्तियां धीरे धीरे एक बड़ी फ़ौज खड़ी हो गयी वहां और इन्हें सामाजिक ताने बाने ने जगह नही दी और दुत्कारा अलग से तब ये वहां से भागे और धीरे-धीरे बंगाल में आ पहुँचे वहां इसीलिये आज भी वैश्यवृति थाईलैंड जैसी है धीरे धीरे यह पूरे इंडियन द्वीप में मांगकर खाने और जम्बूद्वीप (थाईलैंड ,इंडोनेशिया, वियतनाम) की संस्कृति से खुद को योगी,साथु, पूजा पाठ कराने वाला की मौखिक पूजा कराने वाला बन रहे थे और धीरे धीरे यहाँ इनकी किहनियों से यहाँ के भोले लोग फसने लगे और कन्यादान में इन्होंने किहनियों के आधार पर यहाँ की कन्याएं से भी शादी की लेकिन बहुत कम हुआ ये क्योंकि अंग्रेजों द्वारा सिर्फ लड़के नही लड़कियां भी पैदा हुई थी और वो अपनी बहनों से शादी न करें इसके लिए इनके गोत्र बनाये गए ।।
यही वक्त था अफगानी (नॉन रिलिजिन पीपल) यानी के वह भिनेक कबीला जो अपनी सीमाएं बढाना चाहता था उसने लड़ाई शुरू की यही लोग वहां जाकर मुल्ला (मौलवी) बने और इन्हें धार्मिक कट्टर बनाने और ब्रेन वाश करना शुरू किया ।।
यहाँ जो कबीले (Indigenous people) थे उनमें हीन भावना डालना की क्षत्रिय ही योद्धा है बाकी नही से बहुत सी कौमे खुद को कमजोर समझने लगी और युद्ध से डरने लगी , और जो बड़े जमीदार या टेक्स कलेक्टर होते इन्हें वह क्षत्री और राजा के उपाधियों से नवाजते (आपकी जानकारी के लिए बता दे की राजा का अर्थ थाईलैंड में राम है ) अब पुरोहित रखना और पूजा पाठ करना रॉयल या अमीरी का प्रतिबिंब बन गया ।।
अब उसी कौम का जमीदार सिर्फ अपने पुरोहित का कहना मानता था और कबीले से खुद को ऊँचा मान ने लगा और खुद को रॉयल समझने लगा और अपने आस पास सैनिक रखने लगा कहीं आये जाए तो सैनिक के साथ आता जाता इस से कबीले के दूसरे सांस्कृतिक सरदारों को सोचने पर विवश कर दिया ,कि आखिर इस चीज़ से लड़ा कैसे जाए सामने वाला भी अपना है लेकिन ये खाई धीरे धीरे बढ़ती गई और जब अफ़ग़ान के रास्ते से कट्टर धर्मवाद चालु हुआ जो की हिन्द में नही था यहाँ लोग बटे नही थे वह कभी एक ही नही थे सबकी अपनी संस्कृति अपना खान पान अपनी भाषा और अपने तौर तरीके थे लेकिन इस्लाम ने उन्हें एक भी किया हुआ था और साथ ही वहां के कबीलों में समानता भी थी लड़ाई हुई तो कुछ राजवंश जो खुद को रॉयल बोलते थे और कबीलों को लड़ने ही नही दिया , कुछ बक्से जमीदारों की हार ने पूरा देश ग़ुलाम कर दिया ।
अब ये जो सैनिक पहले दूसरे बड़ी जागीरदार के थे अब इनके हो गए सैनिक हमेशा तलवार नही उठाकर रहता अन्य काम भी रहते हैं जैसे राजा की चाकरी करना कपडे धोना घोड़ों को नहलाना क्योंकि ये कहानियां है कि कबीलों ने इनकी सत्ता में ली थी जबकि ऐसा कुछ नही था ये अपने चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवार बनाकर रहने को इसीलिये मजबूर थे कहीं ये लोग आक्रमण न करदें।।
सिर्फ पुरोहित की बात में आया हुआ गिनती के कुछ बड़े जगीरदार खुद को रॉयल और थाईलैंड के राष्ट्रीय ग्रन्थ से खुद को जोड़ने लगे थे और इनकी कहानी से जो लोग जुड़े सिर्फ वही इसका अंग बने बाकी के लोगों पर धीरे धीरे लाठी से तलवार पे आया ये युद्ध रूप तोपों और बंदूकों ने ले लिए जिससे यहाँ के कबीलाई लड़ नही सकते थे।
यही वक्त था महारास्ट्र में कबीलाई संस्कृति के लोंगों को एकत्र कर मराठा संघ बना कर ऊंच नीच और युद्ध लड़ने की कौशलता को बढ़ाया गया और इनके किलों को जीतने का काम शुरू हुआ ।।
जो लोग जगीरदार के साथ रहे उनके छोटे से बड़े काम किये काम से मतलब साफ सफ़ाई धोना पोछना उनकी जागीर में कटाई और खेती और होम गार्ड का काम किया इनमे युद्ध लड़ने की इच्छा शक्ति को जगाने के लिए इन्हें पुरोहित ने "राजपूत" शब्द दिया और कहानियां और बड़ी हुईं और अब बड़े जगीरदार को "रॉयल राजपूत" और अन्य जो इनके काम करते थे उन्हें एक नाम और जाति के तले एक संस्कृति और पहनावे के तले लाने के लिए इस शब्द का उपयोग हुआ ।।
जिसका अर्थ है इन्होंने (पुरोहित) उन्हें (जागीर के कर्मचारी को) जो राजा का पुत्र है ।
अंग्रेज इन किले के या अपने नौकरों को जो इंडिया में थे उन्हें Rashboots कहते थे।
इनमे एक जाति के लोग नही बल्कि उस वक्त इनके यहाँ नॉकरी करने वालों की एक जाति ही बन गयी थी Rashboots जो की पुरोहित( अंग्रेज के ही नजायज औलाद) ने राजपूत कर दिया ।।
इनमे जो शुरू के जगीरदार थे वह रांगड़ , ठाकोर आदि कौम से थे ।
इनके यहाँ काम या किलों में होम गार्ड रानी के साथ रहने वाली लड़कियां, घोड़े की लीद और खाना के कार्य , लोहार जो इनके लिए अस्त्र बनाता था , बढ़ई जो इनके यहाँ के दरवाजे और किले बनाता था चमार जो घोड़ों की या जानवरों की चमड़ी साफ़ करता था , गाय भैंस बकरी का दूध और उन्हें पलने वाला , सब्जियां उगाने वाला , सुवर पालकर किले के अंदर की गन्दगी साफ़ करने वाला यह एक एक करके जो भी इनके यहाँ काम के लिए जाता यह उन्हें वहीं रकः लेते थे क्योंकि कबीलाई समाज में इनकी इज्जत नही रह जाती थी या उस से खुद किले वालों को डर रहता था कहीं ये कुछ अंदर की बाते न बता दे ।
इन सभी को जो किलों में छोटे बड़े काम करते थे इन्हें ही पुरोहित ने "राजपूत" घोषित किया जिन्हे अंग्रेज Rashboots कहते थे और इनके गोत्र बनाये की यह सामाजिक ताने बाने में बंध जाए क्योंकि इनसे इनके कबीले वाले ही शादी व्याह नही कर सकते थे , और इन्हें कभी किले को बचाना या कही लड़ाई करनी हो तो उपयोग किया जाएगा।।
मुगलों को इन्ही रांगड़ लोंगों ने या कहें किले वाले लोंगों ने अपनी बहू बेटियां दी और आज जो खुद को छतरी कहते हैं असल में यह किले में आम कार्य करते थे कबीलाई लोंगों से बचने के लिए दीवार और तलवार बनाना।।
मुस्लिम कौम में भी रांगड़ मिल जाएंगे और आजका मुस्लिम राजपूत वही किले के कर्मचारी हैं जिनको पुरोहित ने राजपूत बनाया था।
अब किले की औरतों के साथ देह सम्बन्ध ज्यादातर राजा और मुस्लिम राजा या उसके मित्र या राजा का पुत्र बनाते रहते थे जिसमें पुरोहित और उसके परिवार की भी बहु-बेटियां या अंग्रेजों द्वारा किले में रहने वाली लड़कियों के साथ संबद्ध और उनसे पुत्र हो जाना आम था ।
जिन्हें रासपुत्र कह सकते हैं या उस वक्त कहा जाता था ।
इन सबको अंग्रेजों ने देश में में राजपूत जाति में शामिल किया और सम्मलित जनगड़ना की ।
इन्हें पुरोहित ने Hinduism इस्लाम के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए और खुद को मोटीवेट रखने के लिए और दूसरे समाजों में इज्जत बनाने के लिए इस शब्द और जाति का निर्माण किया जिन्हें अंग्रेजों और मुगलों की सत्ता तो पहले से ही और आसानी ज़े स्वीकार कर उनके किलों में काम करके यहाँ के कबीलाई जमीदारों की जमीनें छीनकर उन्हें यानी Rashboots को दी जो कबीले संगठित थे और मजबूत थे उनकी जमीनें ये हड़प न सके ।।
पुरोहित और अंग्रेज ने मिलकर यहाँ का भी सामाजिक ढांचा समझा और सभी कबीलाई लोंगों में से एक एक देवता उनकी जाति से बनाने और उसकी हिस्ट्री लिखने और असली हिस्ट्री छुपाने के लिए 17विं से 1857 तक काम चला ।।
1857 का युद्ध यही कबीलाई युद्ध था लेकिन उसमे भी कबीलाई लोगों की हिस्ट्री नही लिखी गयी क्योंकि लिखने वाला अंग्रेज और अंग्रेज का बच्चा था उन्होंने उसमे भी अपना ही नाम ज्यादा लिखा कि इतिहास में यह पता न चले की यह युद्ध यहाँ की जातियों ने लड़ा है जैसे अहीर जाट गुर्जर मराठा और अन्य आदिवासी कौमों ने ।
नकी राजपूत ,ब्राह्मण ,जैन,लोगों ने हाँ हजार में एक होगा उसी का नाम उठाकर इतिहास में लिख दिया जिबकी हजारों कबीलाई लड़े और मरे उनका कोई इतिहास नही इतिहास अगर लिख देते तब यह सीधी सीधी सच्चाई पूरी दुनिया के सामने होती ।।
इसीलिये 1857 के बाद भड़े अंग्रेज भाग खड़े हुए थे बस कुछ काम थे जिन्हें फिनिशिंग करके वह यहाँ के जैन , ब्राह्मण ,राजपूत कौम से कोई नफरत न करे और देश में इन्हें देशी समझे इन कारणो से वह 1947 में गये ।।
ये तीन कौम(rashboots, जैन,ब्राह्मण) अंग्रेजों की और बड़े व्यापारियों की औलादे हैं जिन्हें देश हित से कोई मतलब नही यह सिर्फ लूटने के लिए ही देश में हैं और अंग्रेजों का इन्हें पूरा सपोर्ट है।।
इनके ख़िलाफ़ फिर से यहाँ केंलोंगों को एक होना है और इन्हें भी इनके बाप के पास भेजना है।
अजगर कौम यानी ADIVASI - JAMINDAR
(AHIR, JAT ,GUJJAR, MARATHA OTHERS TRIBAL) -GAREEB (जिनकी ज़मीन तब की सत्ता ने छीन कर सत्ता के चाटुकारों को बाट दी आज तक वैसा ही कर रहे हैं और छोटे जमींवाले मजदूर बन चुके हैं गरीब हो चुके हैं) - रोजंदार ( वे मजदूर जिनपे अब अपना खेत भी नही बचा खेती के घाटे और खेती के लोन से वह जमीन भी चली गयी जो बची थी वह दिन भर काम करते हैं तब खाने को मिलता है उन्हें आसान भाषा में कहने तो मजदूर जो प्रतिदिन काम करके खाता है न की इनकी तरह चाल चल कर और दूसरों को लूटना नही आता उसे )
अजगर के खिलाफ मौजूदा सत्ता व्यवस्था और पाखण्ड है जिसे अजगर एकता जीतेगी ही ।
कबीलाई एकता जिन्दावाद ।।
वर्तमान में ज्यादातर सभी लोग जानते हैं कि एक समाज खुद को पुराण व मनुस्मिर्ति से जोड़कर खुद को क्षत्रिय का स्टेट्स देने के लिए कुछ ज्यादा ही अमादा या जो इंडिया के पुराने राजवंश हैं उनसे खुद को जोड़ने और उन सब पर एकमेव अधिकार के लिए यह प्रयास 16विं सदी से जारी है ।
इस सदी से पूर्व यहाँ राजवंश तो थे लेकिन बहुत बड़े नही भले ही वह इतिहासों में कितनी बड़ी सल्तनत के मालिक दिखाए लेकिन सच यह है कि ये बड़ा भूभाग अलग अलग जागीरदारों और जातियों का अलग अलग जगह पर प्रभाव रहता था या यु कहें कि ये उन जातियों का अपना एक देश होता था पूरे भारत पर 7विं सदी तक तो विशुद्ध रूप से आभीर कबीलों और कबीलाई संस्कृति का ही चलन था ।
इस 7विं सदी के बाद भी यहाँ राज तो रहा है इस संस्कृति का लेकिन सीमा बढ़ाने या देश को और ज्यादा समृद्ध बनाने के लालच ने इन कबिलाई लोगों में एक दूसरे से ही युद्ध शुरू हो गया और यही वक्त था बाहरी लोंगों का फायदा उठाने का ।
इतिहासकार यह मानते हैं कि जो बाहरी लोग यहाँ से व्यापार करते थे वह यहाँ की समृद्धि सुख शान्ति और दुनिया से अलग इस बड़े भूभाग पर लड़ाइयां क्यों नही होती और यही रहा तब ये देश सबसे समृद्ध देश बन जाएगा और वह पिछड़ जाएंगे ।
अतः यह देश की बर्बादी का कारण बड़े व्यापारी रहे बड़े व्यापारी बाहर वालों ने यहाँ के व्यापारियों का तो पहले फायदा उठाया फिर कुछ अपने लोग यहाँ बैठाने के लिए उन्होंने बड़े बड़े चक्रव्यूह रचे और बाहरी लोगों में यह बात फ़ैल गयी की इंडिया एक सुख समृद्ध सम्पन्न द्वीप है , जिसे लूटने और राज करने की लालसा सभी बाहरी देश के बड़े व्यापारियों को लगी यहाँ के मिनरल और यहाँ की ज़मीन का दोहन करने के लिए बहुत बाहरी लोगों ने यहाँ सामाजिक ढांचे को तोड़ने के लिए जम्बूद्वीप (थाईलैंड ,कम्बोडिया ,वियतनाम ,इंडोनेशिया) जैसे वैश्यालय देशों में अंग्रेजों ने आसानी से जड़े जमाली और वहां का पूरा सामाजिक तानाबाना यहाँ लाने के लिए उन्होंने वहाँ की लड़कियों से बच्चे पैदा किये और उन्हें एक डिक्सनरी की तरह उपयोग किया ।
वहां की वर्ण व्यस्वथा से लेकर वहां के पूर्वज या तथाकथित देवी देवता और मूर्तियां धीरे धीरे एक बड़ी फ़ौज खड़ी हो गयी वहां और इन्हें सामाजिक ताने बाने ने जगह नही दी और दुत्कारा अलग से तब ये वहां से भागे और धीरे-धीरे बंगाल में आ पहुँचे वहां इसीलिये आज भी वैश्यवृति थाईलैंड जैसी है धीरे धीरे यह पूरे इंडियन द्वीप में मांगकर खाने और जम्बूद्वीप (थाईलैंड ,इंडोनेशिया, वियतनाम) की संस्कृति से खुद को योगी,साथु, पूजा पाठ कराने वाला की मौखिक पूजा कराने वाला बन रहे थे और धीरे धीरे यहाँ इनकी किहनियों से यहाँ के भोले लोग फसने लगे और कन्यादान में इन्होंने किहनियों के आधार पर यहाँ की कन्याएं से भी शादी की लेकिन बहुत कम हुआ ये क्योंकि अंग्रेजों द्वारा सिर्फ लड़के नही लड़कियां भी पैदा हुई थी और वो अपनी बहनों से शादी न करें इसके लिए इनके गोत्र बनाये गए ।।
यही वक्त था अफगानी (नॉन रिलिजिन पीपल) यानी के वह भिनेक कबीला जो अपनी सीमाएं बढाना चाहता था उसने लड़ाई शुरू की यही लोग वहां जाकर मुल्ला (मौलवी) बने और इन्हें धार्मिक कट्टर बनाने और ब्रेन वाश करना शुरू किया ।।
यहाँ जो कबीले (Indigenous people) थे उनमें हीन भावना डालना की क्षत्रिय ही योद्धा है बाकी नही से बहुत सी कौमे खुद को कमजोर समझने लगी और युद्ध से डरने लगी , और जो बड़े जमीदार या टेक्स कलेक्टर होते इन्हें वह क्षत्री और राजा के उपाधियों से नवाजते (आपकी जानकारी के लिए बता दे की राजा का अर्थ थाईलैंड में राम है ) अब पुरोहित रखना और पूजा पाठ करना रॉयल या अमीरी का प्रतिबिंब बन गया ।।
अब उसी कौम का जमीदार सिर्फ अपने पुरोहित का कहना मानता था और कबीले से खुद को ऊँचा मान ने लगा और खुद को रॉयल समझने लगा और अपने आस पास सैनिक रखने लगा कहीं आये जाए तो सैनिक के साथ आता जाता इस से कबीले के दूसरे सांस्कृतिक सरदारों को सोचने पर विवश कर दिया ,कि आखिर इस चीज़ से लड़ा कैसे जाए सामने वाला भी अपना है लेकिन ये खाई धीरे धीरे बढ़ती गई और जब अफ़ग़ान के रास्ते से कट्टर धर्मवाद चालु हुआ जो की हिन्द में नही था यहाँ लोग बटे नही थे वह कभी एक ही नही थे सबकी अपनी संस्कृति अपना खान पान अपनी भाषा और अपने तौर तरीके थे लेकिन इस्लाम ने उन्हें एक भी किया हुआ था और साथ ही वहां के कबीलों में समानता भी थी लड़ाई हुई तो कुछ राजवंश जो खुद को रॉयल बोलते थे और कबीलों को लड़ने ही नही दिया , कुछ बक्से जमीदारों की हार ने पूरा देश ग़ुलाम कर दिया ।
अब ये जो सैनिक पहले दूसरे बड़ी जागीरदार के थे अब इनके हो गए सैनिक हमेशा तलवार नही उठाकर रहता अन्य काम भी रहते हैं जैसे राजा की चाकरी करना कपडे धोना घोड़ों को नहलाना क्योंकि ये कहानियां है कि कबीलों ने इनकी सत्ता में ली थी जबकि ऐसा कुछ नही था ये अपने चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवार बनाकर रहने को इसीलिये मजबूर थे कहीं ये लोग आक्रमण न करदें।।
सिर्फ पुरोहित की बात में आया हुआ गिनती के कुछ बड़े जगीरदार खुद को रॉयल और थाईलैंड के राष्ट्रीय ग्रन्थ से खुद को जोड़ने लगे थे और इनकी कहानी से जो लोग जुड़े सिर्फ वही इसका अंग बने बाकी के लोगों पर धीरे धीरे लाठी से तलवार पे आया ये युद्ध रूप तोपों और बंदूकों ने ले लिए जिससे यहाँ के कबीलाई लड़ नही सकते थे।
यही वक्त था महारास्ट्र में कबीलाई संस्कृति के लोंगों को एकत्र कर मराठा संघ बना कर ऊंच नीच और युद्ध लड़ने की कौशलता को बढ़ाया गया और इनके किलों को जीतने का काम शुरू हुआ ।।
जो लोग जगीरदार के साथ रहे उनके छोटे से बड़े काम किये काम से मतलब साफ सफ़ाई धोना पोछना उनकी जागीर में कटाई और खेती और होम गार्ड का काम किया इनमे युद्ध लड़ने की इच्छा शक्ति को जगाने के लिए इन्हें पुरोहित ने "राजपूत" शब्द दिया और कहानियां और बड़ी हुईं और अब बड़े जगीरदार को "रॉयल राजपूत" और अन्य जो इनके काम करते थे उन्हें एक नाम और जाति के तले एक संस्कृति और पहनावे के तले लाने के लिए इस शब्द का उपयोग हुआ ।।
जिसका अर्थ है इन्होंने (पुरोहित) उन्हें (जागीर के कर्मचारी को) जो राजा का पुत्र है ।
अंग्रेज इन किले के या अपने नौकरों को जो इंडिया में थे उन्हें Rashboots कहते थे।
इनमे एक जाति के लोग नही बल्कि उस वक्त इनके यहाँ नॉकरी करने वालों की एक जाति ही बन गयी थी Rashboots जो की पुरोहित( अंग्रेज के ही नजायज औलाद) ने राजपूत कर दिया ।।
इनमे जो शुरू के जगीरदार थे वह रांगड़ , ठाकोर आदि कौम से थे ।
इनके यहाँ काम या किलों में होम गार्ड रानी के साथ रहने वाली लड़कियां, घोड़े की लीद और खाना के कार्य , लोहार जो इनके लिए अस्त्र बनाता था , बढ़ई जो इनके यहाँ के दरवाजे और किले बनाता था चमार जो घोड़ों की या जानवरों की चमड़ी साफ़ करता था , गाय भैंस बकरी का दूध और उन्हें पलने वाला , सब्जियां उगाने वाला , सुवर पालकर किले के अंदर की गन्दगी साफ़ करने वाला यह एक एक करके जो भी इनके यहाँ काम के लिए जाता यह उन्हें वहीं रकः लेते थे क्योंकि कबीलाई समाज में इनकी इज्जत नही रह जाती थी या उस से खुद किले वालों को डर रहता था कहीं ये कुछ अंदर की बाते न बता दे ।
इन सभी को जो किलों में छोटे बड़े काम करते थे इन्हें ही पुरोहित ने "राजपूत" घोषित किया जिन्हे अंग्रेज Rashboots कहते थे और इनके गोत्र बनाये की यह सामाजिक ताने बाने में बंध जाए क्योंकि इनसे इनके कबीले वाले ही शादी व्याह नही कर सकते थे , और इन्हें कभी किले को बचाना या कही लड़ाई करनी हो तो उपयोग किया जाएगा।।
मुगलों को इन्ही रांगड़ लोंगों ने या कहें किले वाले लोंगों ने अपनी बहू बेटियां दी और आज जो खुद को छतरी कहते हैं असल में यह किले में आम कार्य करते थे कबीलाई लोंगों से बचने के लिए दीवार और तलवार बनाना।।
मुस्लिम कौम में भी रांगड़ मिल जाएंगे और आजका मुस्लिम राजपूत वही किले के कर्मचारी हैं जिनको पुरोहित ने राजपूत बनाया था।
अब किले की औरतों के साथ देह सम्बन्ध ज्यादातर राजा और मुस्लिम राजा या उसके मित्र या राजा का पुत्र बनाते रहते थे जिसमें पुरोहित और उसके परिवार की भी बहु-बेटियां या अंग्रेजों द्वारा किले में रहने वाली लड़कियों के साथ संबद्ध और उनसे पुत्र हो जाना आम था ।
जिन्हें रासपुत्र कह सकते हैं या उस वक्त कहा जाता था ।
इन सबको अंग्रेजों ने देश में में राजपूत जाति में शामिल किया और सम्मलित जनगड़ना की ।
इन्हें पुरोहित ने Hinduism इस्लाम के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए और खुद को मोटीवेट रखने के लिए और दूसरे समाजों में इज्जत बनाने के लिए इस शब्द और जाति का निर्माण किया जिन्हें अंग्रेजों और मुगलों की सत्ता तो पहले से ही और आसानी ज़े स्वीकार कर उनके किलों में काम करके यहाँ के कबीलाई जमीदारों की जमीनें छीनकर उन्हें यानी Rashboots को दी जो कबीले संगठित थे और मजबूत थे उनकी जमीनें ये हड़प न सके ।।
पुरोहित और अंग्रेज ने मिलकर यहाँ का भी सामाजिक ढांचा समझा और सभी कबीलाई लोंगों में से एक एक देवता उनकी जाति से बनाने और उसकी हिस्ट्री लिखने और असली हिस्ट्री छुपाने के लिए 17विं से 1857 तक काम चला ।।
1857 का युद्ध यही कबीलाई युद्ध था लेकिन उसमे भी कबीलाई लोगों की हिस्ट्री नही लिखी गयी क्योंकि लिखने वाला अंग्रेज और अंग्रेज का बच्चा था उन्होंने उसमे भी अपना ही नाम ज्यादा लिखा कि इतिहास में यह पता न चले की यह युद्ध यहाँ की जातियों ने लड़ा है जैसे अहीर जाट गुर्जर मराठा और अन्य आदिवासी कौमों ने ।
नकी राजपूत ,ब्राह्मण ,जैन,लोगों ने हाँ हजार में एक होगा उसी का नाम उठाकर इतिहास में लिख दिया जिबकी हजारों कबीलाई लड़े और मरे उनका कोई इतिहास नही इतिहास अगर लिख देते तब यह सीधी सीधी सच्चाई पूरी दुनिया के सामने होती ।।
इसीलिये 1857 के बाद भड़े अंग्रेज भाग खड़े हुए थे बस कुछ काम थे जिन्हें फिनिशिंग करके वह यहाँ के जैन , ब्राह्मण ,राजपूत कौम से कोई नफरत न करे और देश में इन्हें देशी समझे इन कारणो से वह 1947 में गये ।।
ये तीन कौम(rashboots, जैन,ब्राह्मण) अंग्रेजों की और बड़े व्यापारियों की औलादे हैं जिन्हें देश हित से कोई मतलब नही यह सिर्फ लूटने के लिए ही देश में हैं और अंग्रेजों का इन्हें पूरा सपोर्ट है।।
इनके ख़िलाफ़ फिर से यहाँ केंलोंगों को एक होना है और इन्हें भी इनके बाप के पास भेजना है।
अजगर कौम यानी ADIVASI - JAMINDAR
(AHIR, JAT ,GUJJAR, MARATHA OTHERS TRIBAL) -GAREEB (जिनकी ज़मीन तब की सत्ता ने छीन कर सत्ता के चाटुकारों को बाट दी आज तक वैसा ही कर रहे हैं और छोटे जमींवाले मजदूर बन चुके हैं गरीब हो चुके हैं) - रोजंदार ( वे मजदूर जिनपे अब अपना खेत भी नही बचा खेती के घाटे और खेती के लोन से वह जमीन भी चली गयी जो बची थी वह दिन भर काम करते हैं तब खाने को मिलता है उन्हें आसान भाषा में कहने तो मजदूर जो प्रतिदिन काम करके खाता है न की इनकी तरह चाल चल कर और दूसरों को लूटना नही आता उसे )
अजगर के खिलाफ मौजूदा सत्ता व्यवस्था और पाखण्ड है जिसे अजगर एकता जीतेगी ही ।
कबीलाई एकता जिन्दावाद ।।
Comments
Post a Comment